उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
मोहिनी
चिन्तित-सी ड्राइंग-रूम में बैठी थी। संजीव अपने साथियों के साथ क्रिकेट
खेल रहा था। सुभद्रा और यमुना को आये देख वह बल्ला फेंक, भागकर उनके पास आ
गया और यमुना के गले से लटकने लगा। यमुना ने उसको तनिक डाँटकर कहा,
‘‘देखो, मेरे कपड़े मैले कर रहे हो, खड़े होकर बात करो।’’
‘‘मैले हो जायँगे तो धुला
लेना।’’ संजीव ने डाँट का उत्तर डाँट में दिया।
सुभद्रा ने उसे घसीटकर
अपने गले लगा लिया। ‘‘संजीव!’’ उसने कहा, ‘‘मैं विलायत जा रही हूँ। पाँच
वर्ष के बाद लौटूँगी।’’
‘‘क्यों जा रही हो?’’
‘‘पढ़ाई करने के लिए।’’
‘‘पर सुमित्रा दीदी तो
यहीं पढ़ाई करती हैं?’’
‘‘उनसे अधिक पढ़ूँगी न!’’
‘‘पढ़कर क्या करोगी?’’
सब हँस पड़े। संजीव की
यही आदत थी। वह प्रत्येक से इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर किया करता था।
चरणदास ने मोहिनी को
खिन्न देख तो लिया था परन्तु सुभद्रा और यमुना की उपस्थिति में उसने इस
विषय पर बात करनी उचित नहीं समझी।
मोहिनी ने भी केवल यही
कहा, ‘‘अब तो आपको कुछ दिन बाहर जाने का कार्यक्रम नहीं बनना चाहिए।’’
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