उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘तो उसको बोर्डिंग हाउस
में प्रविष्ट करा देना।’’
‘‘यही तो मैं विचार कर
रही थी कि उसको लक्ष्मी बहिन के बोर्डिंग हाउस में प्रविष्ट करा दूँ।’’
‘‘तो
ऐसा करो, तुम कस्तूरी को अपने साथ ले जाओ। वह बम्बई तो जा रहा है। यह
विचार तो उसका पहले से ही था। आगे तुम लोग उसे अपने साथ ले जाना।’’
‘‘यह तो बहुत ही अच्छा
होगा। संजीव का दिल लगा रहेगा और हमको भी बहुत सहायता मिलेगा।’’
जब
कस्तूरी को बताया गया कि उसके मामा का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उसको उनके
साथ जाना चाहिए तो वह कहने लगा, ‘‘मेरा एक महीना व्यर्थ में ही नष्ट हो
जायगा।’’
‘‘तुम्हारा
परीक्षा-परिणाम कब घोषित हुआ था?’’ गजराज ने पूछा।
‘‘जुलाई में।’’
‘‘आजकल कौन-सा मास चल रहा
है?’’
‘‘अक्टूबर।’’
‘‘इन तीन महीनों में तो
तुमने दिल्ली-दुर्ग विजय कर लिया है न?’’
‘‘डैडी! आप यह चाहते हैं
कि मैं उनके साथ जाऊँ?’’
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