लोगों की राय

उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘हाँ।’’

‘‘अच्छी बात है, मैं जाऊँगा।’’

नियत तिथि पर चरणदास, मोहिनी, कस्तूरीलाल, सुभद्रा और यमुना तथा संजीव बम्बई के लिए रवाना हो गये।

जाने से एक दिन पूर्व, समय निकालकर चरणदास शरीफन के पास जा पहुँचा। सुख-समाचार पूछ उसने अपने दिल्ली से बाहर जाने की बात बताई तो वह रो पड़ी। चरणदास ने बताया, ‘‘देखो जान, यह नौकरी का मामला है। गजराजजी को कुछ सन्देह हो गया है, इस कारण मैं यहाँ से टल जाना ही उचित समझता हूँ।’’

‘‘यहाँ के खरचे का क्या इन्तज़ाम होगा?’’

‘‘मैं दो हज़ार रुपये तुमको देकर जाऊँगा। उसका हिसाब तुम आने पर मुझे दे देना। इसमें से तुम अपना जेब-खर्च भी निकाल लेना।’’

चरणदास शरीफन को पाँच सौ रुपये मासिक जेब-खर्च के लिए दिया करता था और घर का सब खर्च वह पृथक् दिया करता था। यह खर्च भी लगभग चार-पाँच सौ हो जाता था।

इन सबको स्टेशन तक छोड़ने के लिए गजराज और लक्ष्मी भी पहुँचे हुए थे। गाड़ी छूटने से पूर्व गजराज ने चरणदास को पृथक् में ले जाकर पूछा, ‘‘शरीफन को कुछ देकर जा रहे हो अथवा वह भूखी ही मरेगी?’’

‘‘दे दिया है।’’

‘‘तब ठीक है।’’ गजराज ने मुस्कराते हुए कहा।

चरणदास निश्चिन्त होकर बम्बई के लिए रवाना हो गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book