इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
आक्रोश की उत्पत्ति
किसी दिन की शुरुआत ही
कुछ ऐसी होती है कि होनी की अनहोनी और अनहोनी की होनी हो जाती है। सब कुछ
अजीब और अद्भुत दिखने लगता है। उस दिन विशेष का महत्व वाकई इतिहास में
अजर-अमर हो जाता है।
हिंदुस्तान के इतिहास में 10 मई 1857 का दिन एक ऐसा ही दिन था, जो हमेशा याद रहेगा।
आजादी की लड़ाई का वह एक जोशीला दिन था। उस दिन के चौबीस घंटों में आजादी की पहली लड़ाई की बहादुरी का दर्शन हुआ। दिल्ली के पास मेरठ में उस दिन असंतोष की आग भड़क उठी। उस दिन जनविद्रोह की आग ने गंगा-जमुना के सारे इलाके को चपेट में ले लिया।
मेरठ में जो घटित हुआ, वह अचानक नहीं हुआ था। वर्ष 1857 की शुरुआत में ही आगरा और अवध के इलाकों में लोग चमत्कारिक बेचैनी महसूस कर रहे थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए इस वर्ष का महत्व विशेष रहा। इस कंपनी की स्थापना सन् 1600 में हिदुस्तान और इंग्लैंड के बीच व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से की गयी थी। शुरुआती दौर में कंपनी ने सूरत, कलकत्ता आदि बंदरगाहों में अपने माल-गोदाम खोले।
बादशाह जहांगीर की इजाजत से कंपनी के आयात-निर्यात कारोबार में जान आ गयी थी। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सल्तनत का रोब धीरे-धीरे खत्म होता गया। उससे कंपनी को अच्छा फायदा हुआ। उनको अपना कारोबार बढ़ाने में आसानी हुई। कंपनी ने अपना ठिकाना बंगाल में जमा लिया था। कलकत्ता अब कंपनी का प्रधान दफ्तर बन गया था।
1757 ई. में कलकत्ता के पास प्लासी में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और कंपनी के बीच युद्ध हुआ। नवाब यह लड़ाई हार गया। कंपनी के हौसले अब बढ़ गये। कंपनी के आलाकमान की लालसा बढ़ गयी। केवल बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरा हिंदुस्तान निगलने की महत्वाकांक्षा पैदा हो गयी।
अगले सौ सालों के भीतर कंपनी ने साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाकर पूरे देश पर कब्जा कर लिया। 23 जून 1857 को विजय दिवस की शताब्दी मनाने की योजना तय हुई। अचानक उसी दिन आगरा और अवध में ‘चपाती मुहिम’ शुरू हो गयी। कंपनी के विभिन्न कचहरियों में डर का साया फैल गया। कंपनी ने भरसक प्रयास किये, लेकिन मुहिम का राज खुल नहीं सका। चपाती मुहिम के अंदर की बात कंपनी समझ नहीं पा रही थी। आखिर यह चपाती मुहिम कौन और क्यों चला रहा है?
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