इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
कंपनी के लोगों में कानाफूसी होने लगी। हिंदुस्तानी जनता में अंग्रेजी राज के खिलाफ असंतोष भड़क रहा था। मथुरा का कलेक्टर मार्क टॉर्नहिल बेफिक्र था। वह स्वयं को बहादुर अधिकारी समझता था। वह सबसे कहने लगा, ‘‘चपाती मुहिम सभी जगहों पर फैल गयी है। यह सब कौन कर रहा है, यह मैं खोज निकालूंगा। मैं इस मुहिम की जड़ उखाड़ फेकूँगा।’’
चपाती मुहिम जनवरी 1857 में शुरू हुई थी। अब मार्च गुजर चुका था। मथुरा की कचहरी में अब तक चपाती का दर्शन नहीं हुआ था। टॉर्नहिल खुश था। उसे लगा कि उसके साथियों को डरानेवाला यह सिलसिला अब खत्म हो गया है।
अचानक एक दिन कचहरी में हादसा हुआ। जो डर था, वही हो गया। टॉर्नहिल के मेज पर हथेली के आकार की चार चपातियाँ कतार से रखी हुई थीं। यह नजारा देखकर टॉर्नहिल का पसीना छूट गया। उसने यह खबर तुरंत आगरा के कमिश्नर जॉर्ज हार्वे को पहुंचा दी। हार्वे ने जान लिया कि अब आगरा भी सुरक्षित नहीं रह गया। मथुरा की तरह अन्य जगहों से भी यही समाचार प्राप्त होने लगे। यह देखकर टॉर्नहिल की तरह हार्वे भी चौंक गया। अब चुप रहना मुश्किल था। हार्वे ने सभी दिशाओं की ओर अपने आदमी भेज दिये। उनको मुहिम के सूत्राधार की तलाश का काम सौंपा गया। उसे विश्वास था कि इसका भेद जल्द ही खुल जायेगा। लेकिन उसके आदमी खाली हाथ लौट आये। हार्वे ने कलकत्ता के गवर्नर लॉर्ड कैनिग को खत लिखा– ‘‘आजकल कचहरियां खोलते ही वहाँ किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा रखी तीन-चार चपातियां नजर आती हैं। इस घटना की पूरी जांच की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। लगता है कि ये चपातियां रातोंरात डेढ़-दो सौ मील का फासला तय करती हैं। जगह-जगह आदमी लगा दिये हैं। हमारे इलाके में इस चपाती मुहिम ने हो हल्ला मचा दिया है।’’
कैनिंग भी उलझन में पड़ गया। आगरा-दिल्ली से लेकर लखनऊ-कानपुर तक इस मुहिम की खलबली मच गयी। उसने महसूस किया कि इस मुहिम के पीछे चल रही साजिश का पर्दाफाश करना चाहिए।
गवर्नर जनरल से आदेश मिलते ही जवाबतलबी शुरू हो गयी। इस संदेह के घेरे में खुद बादशाह बहादुरशाह जफर भी आ गये। बयासी वर्ष के बूढ़े बादशाह ने कानों पर हाथ रखे और बोले, ‘‘यह बिलकुल अजीब किस्सा है। मैंने जिंदगी में पहली बार यह सुना है।’’
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