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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

अवध की राजधानी की शान ध्वस्त हो गयी। जो हाल दिल्ली शहर का हुआ वही लखनऊ का भी हुआ। बागियों का सफाया हो जाने के बाद अंग्रेज सिपाहियों ने लूटमार शुरू की। वे अमीरों के मकानों में घुसकर जेवरात लूटने लगे। लोग डरकर बाहर का दरवाजा बंद कर देते थे। अंग्रेज सिपाही खिड़कियों से कूदकर मकानों में घुसने लगे। अंग्रेज सिपाहियों की जेबें सोना-चांदी, हीरा-मोती से लबालब भरने लगीं। वे मालामाल हो गये। 21 मार्च 1858 के दिन अवध की राजधानी लखनऊ पर कंपनी सरकार का झंडा फहराने लगा। इस घटना पर लंदन के टाइम्स समाचार पत्र ने लिखा था— ‘‘इस जीत के कारण आउट्रम और कैंपबेल के सिपाही मालामाल हो गये। उन्होंने केवल छह दिनों के भीतर साठ लाख रुपये कीमत की संपत्ति लूट ली।’’

सर कॉलीन कैंपबेल ने लखनऊ में एक विजेता की तरह प्रवेश किया।

सर कॉलीन कैंपबेल और आउट्रम के बीच बातचीत चल रही थी, तभी खबर पहुंची कि ‘रोहिलखंड के बागियों ने बहादुर खान के नेतृत्व में चढ़ाई की मुहिम शुरू कर दी है।’ कैंपबेल को बरेली की ओर जाना पड़ा।

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