इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
|
11 पाठकों को प्रिय 55 पाठक हैं |
संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
मर्दानी झांसीवाली का दर्शन
कैंपबेल ने रोहिलखंड
मुहिम की बागडोर ब्रिगेडियर वाल्पोल को सौंप दी। वाल्पोल अपनी पलटन लेकर
बरेली की ओर चल पड़ा। वह नौ दिनों के बाद रुइयां पहुंचा। वाल्पोल अपनी
सेना लेकर सीधे किले के प्रमुख द्वार पर जा खड़ा हुआ। उसने आसपास के
परिसर
का मुआयना किये बगैर हमला बोल दिया।
किले के तालुकदार ने पहले ही पर्याप्त सिपाहियों की पलटन तैनात कर रखी थी। दुश्मन की सेना का हमला देखकर उसने तुरंत सिपाहियों को गोलीबारी का आदेश दिया।
इस प्रतिकार से वाल्पोल चकित हुआ। इस लड़ाई में वाल्पोल के सौ सिपाही मारे गये। वाल्पोल ने गलत जगह तोपें रखकर मुसीबत और ज्यादा बढ़ा ली। किले से बहुत दूरी पर तोपें रखी गयी थीं। किले के बजाय वाल्पोल के सिपाही तोप का निशाना बनने लगे। इस गलती के कारण उसके और सिपाही मारे गये।
वाल्पोल रुइयां में रुका था, तब कैंपबेल ने दूसरी पलटन लेकर बरेली की ओर प्रस्थान किया। वह 5 मई को बरेली पहुंचा। कैंपबेल का मुकाबला करने की ताकत बहादुर खान के पास नहीं थी। उसने बरेली छोड़ दी। इन घटनाओं के बावजूद रोहिलखंड पर बहादुर खान की पकड़ मजबूत थी। बहादुर खान के सिपाही कैंपबेल की पलटन पर चोरी-छुपे हमले करते रहे। रोहिलखंड के घने जंगलों से बहादुर खान को खोज निकालना मुश्किल था। कैंपबेल के लाख कोशिशों के बावजूद खान का कुछ पता नहीं चला। कैंपबेल ने बहादुर खान का नाम मन से निकला दिया।
उधर फैजाबाद में एक मौलवी ने कपंनी सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। इस मौलवी को किसी के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं मिली। लंबा कद, फौलादी हड्डी, पैनी नजर और खूबसूरत दाढ़ी से मौलवी की व्यक्तित्व प्रभावशील बन पड़ा था। उसकी बोली में जादू था। कोई भी उसकी बोली से तुरंत प्रभावित हो जाता था। उस वजह से उसके आसपास हमेशा लोगों की भीड़ लगी रहती थी। अवध पर कंपनी सरकार का कब्जा होने के बाद नवाब का जीना दूभर हो गया था। हजरत महल नवाब की सबसे खूबसूरत और जवान बेगम थी। वह दरबार की मामूली नर्तकी थी। नर्तकी से नवाब की बेगम बनने पर उसका सपना पूरा हुआ था। नवाब के दुर्भाग्य से उसे भी दर-दर भटकना पड़ा।
|