लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक)

चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394
आईएसबीएन :978-1-61301-149

Like this Hindi book 11 पाठकों को प्रिय

336 पाठक हैं

‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है


डिप्टी– तोम पुलिस को धोखा देना दिल्लगी समझता है। अभी दो गवाह दे कर साबित कर सकता है कि तुम राजद्रोह का बात कर रहा था। बस, चला जायगा सात साल के लिए। (रमानाथ कुछ घबराता है। डिप्टी भाप लेता है।) वहाँ हलवा– पूरी नहीं पायेगा। काल कोठरी का चार महीना भी हो गया तो तुम बच नहीं सकता। वहीं मर जायगा।

(रमा का चेहरा फीका पड़ जाता है। खून सूखता है। वह जैसे रो पड़ेगा।)

रमानाथ– (काँपता हुआ) आप लोगों की यही इच्छा है तो यही सही। भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊँगा न। मैं मरने को तैयार हूँ।

(सहसा इन्सपेक्टर मुस्कुराता है। फिर बनावटी तेजी से बोलता है।)

इन्स्पेक्टर– हलक से कहता हूँ, डिप्टी साहब! आप लोग आदमी को पहचानते तो हैं नहीं, रोब जमाने! इस तरह की गवाही देना हर एक समझदार आदमी को बुरा मालूम होगा। मैं होता तो मुझे भी होता, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हैं कि वे हमारे खिलाफ शहादत देंगे। आप बेफिक्र रहिए, हलफ से कहता हूँ। (रमा का हाथ पकड़ कर) आप मेरे साथ चलिए, बाबू जी। आपको अच्छे रेकार्ड सुनाऊँ।

रमानाथ– (हाथ छुड़ा कर) मुझे दिक न कीजिए, इन्सपेक्टर साहब! अब तो मुझे जेल में मरना है।

इन्स्पेक्टर– (रमा को ले जाते हुए) आप ऐसी बातें मुँह से क्यों निकालते हैं साहब, जेल में मरें आपके दुश्मन, हलफ से कहता हूँ…

(इन्स्पेक्टर रामनाथ को प्राय: घसीट कर बाहर ले जाते हैं। डिप्टी उसी तेजी में है और बोलते– बोलते पीछे जाते हैं)

डिप्टी– साहब, यो हम बाबू साहब के साथ सब तरह का सलूक करने को तैयार हैं, पर जब हमारे खिलाफ गवाही देगा, तो हम भी अपनी कार्रवाई करेगा। जरूर करेगा।

दारोगा—पर डिप्टी साहब, अब कुछ, न करना पड़ेगा। बाबू साहब वही गवाही देंगे जो हम चाहेंगे।

डिप्टी– जानता हूँ।

(दोनों हँस पड़ते हैं और बाहर जाते हैं। परदा गिरता है।)

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book