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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक)

चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394
आईएसबीएन :978-1-61301-149

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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है


सरकारी वकील– योग आनर! आज आपके सम्मुख एक ऐसा अभियोग उपस्थित हुआ है जैसा सौभाग्य से बहुत कम हुआ करता है। आपको जनकपुर की डकैती का हाल मालूम है, और मालूम है कि किस प्रकार यह युवक इलाहाबाद से भाग कर आया और इसने डाकुओं का सरगना होने का दावा किया। पुलिस को गवाह नहीं मिल रहे थे। इस युवक ने उसका लाभ उठाया। मुखबिर बन गया। बहुत संभव था कि कोई शहादत न पा कर पुलिस डाके का मुकदमा न चलाती, पर इस युवक के चकमे में आ कर उसने अभियोग चलाने का निश्चय किया। इसमें चाहे और कोई गुण हो या न हो इसकी रचना शक्ति की प्रखरता से इनकार नहीं किया जा सकता। मुकदमा चला पर इस बीच में उसे स्वभाग्य– निर्णय का इससे अच्छा अवसर मिल गया। वह अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ कर सकता है। किसी के गले पर छुरी चला सकता है और साधु वेश भी धारण कर सकता है। हम खुश हैं कि सद्बुद्धि ने अंत में उस पर विजय पायी लेकिन इसकी चकमेबाजियों से पुलिस की जो बदनामी हुई, इसका जिम्मेदार कौन है? योर आनर! ऐसे आदमी को आदर्श दंड मिलना चाहिए, ताकि फिर किसी को चकमेबाजी का साहस न हो… आपको केवल यह विचार करना है कि उसने पुलिस को धोखा दिया या नहीं। इस विषय में अब कोई संदेह नहीं रह जाता कि उसने धोखा दिया अगर धमकियाँ दी गयी थीं, तो वह पहली अदालत के बाद जज की अदालत में अपना बयान वापिस ले सकता था, पर उस वक्त भी इसने ऐसा नहीं किया। इससे स्पष्ट है कि धमकियों के आक्षेप मिथ्या हैं। उसने जो कुछ किया स्वेच्छा से किया। ऐसे आदमी को यदि दंड न दिया गया तो उसे अपनी कुटिल नीति से काम लेने का फिर साहस होगा और उसकी हिंसक मनोवृत्तियाँ और भी बलवान हो जायँगी।

(सरकारी वकील बैठता है। सन्नाटा जागता है। पर तभी सफाई का वकील खड़ा हो जाता है और कमरे में सन्नाटा फिर सो जाता है।)

सफाई का वकील– यूअर आनर! यह मुकदमा अंग्रेज इतिहास ही में नहीं शायद सार्वदेशिक न्याय के इतिहास में एक अद्भुत घटना है। रमानाथ एक साधारण युवक है, रिश्वत लेने और आवश्यक खर्च करने वाला। हिसाब की भूल को गबन समझ कर कलकत्ता भाग आता है। यहाँ पुलिस के पंजे में फँसकर फरजी मुखबिर बनता है। यहाँ आ कर उसके जीवन में नया परिवर्तन होता है। वह सब होता है उसकी पत्नी के कारण जो उसकी तलाश में कलकत्ता आती है। सब जानते हैं उस देवी ने कैसे पत्र लिखा, कैसे रामनाथ उससे मिला और बयान बदलने पर राजी हुआ। पुलिस उसे फिर प्रलोभन देती है पर वह नहीं मानता। आखिर वे जालपा को गिफ्तार करने की धमकी देते हैं। रमानाथ की हिम्मत टूट जाती है। वह बयान नहीं पलटता। मुलजिमों को सजा हो जाती है। (क्षणभर रुक जाता है) इधर जालपा देवी दिनेश के घर जा कर उनकी सेवा करती है। उसके घर का काम अपने हाथों से करती है। सहसा रमानाथ एक दिन मोटर पर सैर करता हुआ जालपा को सिर पर एक पानी का मटका रखे देख लेता है। उसकी आत्मा मर्यादा जाग उठती है। जोहरा के बयान में वह सारी कहानी आ गयी है। जो कुछ हुआ है वह हमारे सामने है। (देखने को रुकता है) मैं यह नहीं कहता कि उसने झूठी गवाही नहीं दी। लेकिन उस परिस्थिति और उन प्रलोभनों पर ध्यान दीजिए तो इस अपराध की गहनता बहुत कुछ घट जाती है। उसने खुद एकबाल किया है। क्या इसका उसको दंड़ मिलना चाहिए? उसके कारण एक वेश्या देवी बन गयी है। क्या वह दंड के योग्य है? क्या जालपा देवी की कर्तव्य– परायणता दंड के योग्य है? जालपा के कारण पन्द्रह परिवार को अभय दान मिला। क्या उसे इस बात की सजा दी जा सकेगी! वह पति के साथ रह कर पुलिस की नौकरी में ऐश कर सकती थी लेकिन वह यातना सहने को तैयार हो गयी क्या यही उसके धर्मानुराग का उपहार होगा कि वह पति– वंचित हो कर जीवन– पथ पर भटकती फिरे? (आवेश)

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