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उपन्यास >> चंद्रकान्ता

चंद्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

नौवां बयान

तेजसिंह पहरे वाले सिपाही की सूरत में किले के दरवाज़े पर पहुंचे। कई सिपाहियों ने, जो सवेरा हो जाने के सबब से जाग उठे थे, तेजसिंह की तरफ देखकर कहा, ‘‘जैरामसिंह, तुम कहां चले गये थे? यहां पहरे में गड़बड़ पड़ गया। बद्रीनाथ जी ऐयार पहरे की जांच करने आये थे, तुम्हारे कहीं चले जाने का हाल सुनकर बहुत खफा हुए और तुम्हारा पता लगाने के लिए आप ही कहीं गये हैं, अभी तक नहीं आए। तुम्हारे सबब से हम लोगों पर भी खफगी हुई।’’ जैरामसिंह (तेजसिंह) ने कहा, ‘‘मेरी तबीयत खराब हो गई थी, हाजत मालूम हुई इस सबब से मैदान चला गया, कई दस्त आये जिससे देर हो गई और फिर भी कुछ पेट में गड़बड़ मालूम पड़ता है। भाई, जान है तो जहान है, चाहे कोई रंज हो या खुशी हो यह ज़रूरत तो रोकी नहीं जाती, मैं फिर जाता हूं और अभी आता हूं!’’ यह कह नकली जैरामसिंह तुरन्त वहां से चलता बना।

पहरे वालों से बातचीत करके तेजसिंह ने सुन लिया कि बद्रीनाथ आये थे और उनकी खोज में गये हैं, इससे वे होशियार हो गये। सोचा कि अगर हमारे यहां होते बद्रीनाथ लौट आवेंगे जो ज़रूर पहचान जायेंगे, इससे ठहरना मुनासिब नहीं। आखिर थोड़ी दूर जा एक भिखमंगे की सूरत बना सड़क के किनारे बैठ गये और बद्रीनाथ के लौट आने की राह देखने लगे। थोड़ी देर गुज़री थी कि दूर से बद्रीनाथ आते दिखाई पड़े, पीछे-पीछे गट्ठर लादे नाज़िम था जिसके पीछे वह सिपाही भी था जिसकी सूरत बन तेजसिंह आये थे।

तेजसिंह इस ठाठ से बद्रीनाथ को आते देख चकरा गए। जी में सोचने लगे कि ढंग बुरे नज़र आते हैं। इस सिपाही को तो जो पीछे-पीछे चला आता है, मैं पेड़ के साथ बांध आया था। उसी जगह कुमार और देवीसिंह भी थे। बिना कुछ उपद्रव मचाये इस सिपाही को ये लोग नहीं पा सकते थे। ज़रूर कुछ-न-कुछ बखेड़ा हुआ है। ज़रूर इस गट्ठर में जो नाज़िम की पीठ पर है कुमार होंगे या देवीसिंह, मगर इस वक़्त बोलने का मौका नहीं है, क्योंकि यहां सिवाय इन लोगों के हमारी मदद करने वाला कोई न होगा, यह सोचकर तेजसिंह चुपचाप उसी जगह बैठे रहे। जब ये लोग गट्ठर लिये हुए किले के अन्दर चले गये तब उठकर उस तरफ का रास्ता लिया जहां कुमार और देवीसिंह को छोड़ आये थे। देवीसिहं उसी जगह पत्थर पर उदास बैठे कुछ सोच रहे थे कि तेजसिंह आ पहुंचे। देखते ही देवीसिंह दौड़कर पैरों पर गिर पड़े और गुस्से भरी आवाज़ में बोले, ‘‘गुरुजी, कुमार तो दुश्मनों के हाथ पड़ गये।’’

तेजसिंह पत्थर पर बैठ गये और बोले, ‘‘खैर, खुलासा हाल कहो, क्या हुआ?’’ देवीसिंह ने जो कुछ बीता था सब हाल कह सुनाया।

तेजसिंह ने कहा, ‘‘देखो आजकल हम लोगों का नसीब कैसा उलटा हो रहा है, फिक्र चारों तरफ की ठहरी मगर करें तो क्या करें? बेचारी चन्द्रकान्ता और चपला न मालूम किस आफत में फंस गई और उनकी क्या दशा होगी, उसकी फिक्र तो थी ही मगर कुमार का फंसना तो गजब हो गया। थोड़ी देर तक देवीसिंह और तेजसिंह बातचीत करते रहे, इसके बाद उठकर दोनों एक तरफ का रास्ता लिया।’’

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