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चन्द्रकान्ता सन्तति - 4

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8402
आईएसबीएन :978-1-61301-029-7

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 4 का ई-पुस्तक संस्करण...

ग्यारहवाँ बयान


दोनों कुमार यद्यपि सर्यू को पहिचानते न थे मगर इन्दिरा की जुबानी उसका हाल सुन चुके थे, इसलिए उन्हें शक हो गया कि यह सर्यू है। दूसरे राजा गोपालसिंह ने भी पुकारकर दोनों कुमारों से कहा कि इन्दिरा की माँ सर्यू यही हैं, और इन्द्रदेव ने कुमारों की तरफ बताकर सर्यू से कहा कि राजा बीरेन्द्रसिंह के दोनों लड़के ये ही कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह हैं, जो तिलिस्म तोड़ने के लिए यहाँ आये हैं, इन्हीं की बदौलत तुम आफत से छूटोगी।

दोनों कुमारों को देखते ही सर्यू दौड़कर पास चली आयी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह के पैरों पर गिर पड़ी। सर्यू उम्र में कुँअर इन्द्रजीतसिंह से बहुत बड़ी थी, मगर इज्जत और मर्तवें के खयाल से दोनों को अपना-अपना हक अदा करना पड़ा। कुमार ने उसे पैर पर से उठाया और दिलासा देकर कहा, ‘सर्यू, इन्दिरा की जुबानी मैं तुम्हारा हाल पूरा-पूरा तो नहीं, मगर बहुत कुछ सुन चुका हूँ। और हम लोगों को तुम्हारी अवस्था पर बहुत बड़ा रंज है। परन्तु अब तुम्हें चाहिए कि अपने दिल से दुःख को दूर करके ईश्वर को धन्यवाद दो, क्योंकि तुम्हारी मुसीबत का जमाना अब बीत गया और ईश्वर तुम्हें इस कैद से बहुत जल्द छुड़ानेवाला है। जब तक हम इस तिलिस्म में हैं, तुम्हें बराबर अपने साथ रक्खेंगे और जिस दिन हम दोनों भाई तिलिस्म के बाहर निकलेंगे, उस दिन तुम भी दुनिया की हवा खाती हुई मालूम करोगी कि तुम्हें सतानेवालों में से अब कोई भी स्वतन्त्र नहीं रह गया और न अब तुम्हें किसी तरह का दुःख भोगना पड़ेगा तुम्हें ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहिए कि दुष्टों के इतना ऊधम मचाने पर भी तुम अपने पति और अपनी प्यारी लड़की को सिवाय अपनी जुदाई के और किसी तरह के रंज और दुःख से खाली पाती हो। ईश्वर तुम लोगों का कल्याण करें।’’

इसके बाद कुमार ने कमरे की तरफ सर उठाकर देखा। राजा गोपालसिंह ने इन्द्रदेव की तरफ इशारा करके कहा, ‘‘इन्दिरा के पिता इन्द्रदेव को हमने बुलवा भेजा है। शायद आज के पहिले आपने इन्हें न देखा होगा।’’

उस समय पुनः इन्द्रदेव ने झुककर कुमार को सलाम किया और कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने सलाम का जवाब देकर कहा, ‘‘आपका आना बहुत अच्छा हुआ। आप उन दोनों को अपनी आखों से देखकर प्रसन्न हुए होंगे। कहिए रोहतासगढ़ का क्या हाल है?

इन्द्रदेव : सब कुशल है। मायारानी और दारोगा तथा और कैदियों को साथ लेकर राजा बीरेन्द्रसिंह चुनारगढ़ की तरफ रवाना हो गये, किशोरी, कामिनी और कमला को अपने साथ लेते गये। लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली तथा नकली बलभद्रसिंह को उनसे माँगकर मैं अपने घर ले गया और उन्हें उसी जगह छोड़कर राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार यहाँ चला आया हूँ। यह हाल संक्षेप में मैंने इसलिए बयान किया कि राजा गोपालसिंह की जुबानी वहाँ का कुछ हाल आपको मालूम हो गया है, यह मैं सुन चुका हूँ।

इन्द्रजीत : लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली को आप यहाँ क्यों न ले आये?

इसका जवाब इन्द्रदेव ने तो कुछ भी न दिया, मगर राजा गोपालसिंह ने कहा, ‘‘ये असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए अपने मकान से रवाना हो चुके थे, जब रास्ते में मेरा पत्र इन्हें मिला। परसों एक पत्र मुझे कृष्णाजिन्न का भेजा हुआ मिला था। उसके पढ़ने से मालूम हुआ कि मनोरमा भेष बदलकर राजा साहब के लश्कर में जा मिली थी, जिसका पता लगाना बहुत ही कठिन था, और वह किशोरी, कामिनी को मार डालने की सामर्थ्य रखती थी, क्योंकि उसके पास तिलिस्मी खंजर भी था। इसलिए कृष्णाजिन्न ने राजा साहब को लिख भेजा था कि बहाना करके गुप्त रीति से किशोरी, कामिनी और कमला को हमारे फलाने तिलिस्मी मकान में (जिसका पता ठिकाना और हाल भी लिख भेजा था) शीघ्र भेज दीजिए, मैं यहाँ मौजूद रहूँगा और उनके बदले में अपनी लौंडियों को किशोरी, कामिनी और कमला बनाकर भेज दूँगा, जो आपके लश्कर में रहेंगी। ऐसा करने से यदि मनोरमा का वार चल भी गया तो हमारा बहुत नुकसान न होगा। राजा साहब ने भी यह बात पसन्द कर ली और कृष्णाजिन्न के कहे मुताबिक कामिनी और कमला को खुद तेजसिंह रथ पर सवार कराके कृष्णाजिन्न के तिलिस्मी मकान में छोड़, आये तथा उनकी जगह भेष बदली हुई लौंड़ियों को अपने लश्कर में ले गये। आज रात को कृष्णाजिन्न का दूसरा पत्र मुझे मिला, जिससे मालूम हुआ कि राजा साहब के लश्कर में नकली किशोरी, कामिनी और कमला मनोरमा के हाथ से मारी गयी और मनोरमा गिरफ्तार हो गयी। आज के पत्र में कृष्णाजिन्न ने यह भी लिखा है कि तुम इन्द्रदेव को एक पत्र लिख दो कि वह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को भी बहुत जल्द उसी तिलिस्मी मकान में पहुँचा दें, जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं, मैं (कृष्णाजिन्न) स्वयं वहाँ मौजूद रहूँगा और दो तीन दिन बाद दुश्मनों का रंग-ढंग देखकर किशोरी, कामिनी, कमला, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को जमानिया पहुँचा दूँगा। इसके बाद राजा बीरेन्द्रसिंह की आज्ञा होगी, या जब उचित होगा तो सभों को चुनार पहुँचाया जायगा और उन लोगों के सामने वहाँ भूतनाथ का मुकद्दमा होगा। कृष्णाजिन्न का यह लिखना मुझे बहुत पसन्द आया वह बड़ा ही बुद्धिमान और नेक आदमी  है, जो काम करता है, उसमें कुछ-न-कुछ फायदा समझ लेता है। अस्तु, मैं चाहता हूँ कि (इन्द्रदेव की तरफ इशारा करके) इन्हें आज ही से यहाँ बिदा कर दूँ, जिसमें ये उन तीनों औरतों को ले जाकर कृष्णाजिन्न के तिलिस्मी मकान में पहुँचा दें। वहाँ दुश्मनों का डर कुछ भी नहीं है, और किशोरी तथा कामिनी को भी इन लोगों से मिलने की बड़ी चाह है, जैसाकि कृष्णाजिन्न के पत्र से मालूम होता है।’’

ये बातें जो राजा गोपालसिंह ने कहीं दोनों कुमारों को खुश करने के लिए वैसी ही थीं, जैसे चातक के लिए स्वाती की बूदें। दोनों कुमारों को किशोरी और कामिनी के मिलने की आशा ने हद्द से ज्यादा प्रसन्न कर दिया। इन्द्रजीतसिंह ने मुस्कुराकर गोपालसिंह से कहा, ‘‘कृष्णाजिन्न की बात मानना आपके लिए उतना ही आवश्यक है, जितना हम दोनों भाइयों के लिए तिलिस्म तोड़कर चुनारगढ़ पहुँचना। आप बहुत जल्द इन्द्रदेव को यहाँ से रवाना कीजिए।’’

गोपाल : ऐसा ही होगा।

आनन्द : कृष्णाजिन्न का वह तिलिस्मी मकान कहाँ पर है और यहाँ से कै दिन की राह...

गोपाल : यहाँ से कुल पन्द्रह सोलह कोस पर है।

इन्द्रजीत : वाह वाह, तब तो बहुत ही नजदीक है, (इन्द्रदेव से) मेरी तरफ से कृष्णाजिन्न को प्रणाम करके बहुत धन्यवाद दीजियेगा, क्योंकि उन्होंने बड़ी चालाकी से किशोरी, कामिनी और कमला को बचा लिया।

इन्द्रदेव : बहुत अच्छा।

इन्द्रजीत : आप तो असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए घर से निकले थे, उनका...

इन्द्रदेव : (राजा गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) आप कहते हैं कि नकली बलभद्रसिंह ने तुम्हें धोखा दिया, तुम अब उनकी खोज मत करो क्योंकि भूतनाथ ने असली बलभद्रसिंह का पता लगा लिया और उन्हें छुड़ाकर चुनारगढ़ ले गया।

इन्द्रजीत : (गोपालसिंह से) क्या यह बात सच है?

गोपाल : हाँ, कृष्णाजिन्न ने मुझे यह भी लिखा था।

इन्द्रजीत : (मुस्कुराकर) तब तो इस खबर में किसी तरह का शक नहीं हो सकता।

इसके बाद दुनिया के पुराने नियमानुसार और बहुत दिनों से बिछुड़े हुए प्रेमियों के मिलने पर जैसा हुआ करता है, उसी के मुताबिक इन्द्रदेव और सर्यू में कुछ बातें हुईं, इन्दिरा ने भी माँ से कुछ बातें कीं, और तब इन्दिरा और इन्द्रदेव को साथ लेकर राजा गोपालसिंह कमरे के बाहर हो गये।

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