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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

चौदहवाँ बयान


सबसे ज्यादे फिक्र भूतनाथ को इस बात के जानने की थी कि वे दोनों नकाबपोश कौन हैं और दारोगा जैपाल तथा बेगम का उन सूरतों से क्या सम्बन्ध है, जो समय-समय पर नकाबपोश ने दिखायी थीं, या हमारे तथा राजा गोपालसिंह और लक्ष्मीदेवी इत्यादि के सम्बन्ध में हम लोगों से भी ज्यादे जानकारी इन नकाबपोशों को क्योंकर हुई, तथा ये दोनों वास्तव में दो ही है या कई।

इन्हीं बातों के सोच-विचार में भूतनाथ का दिमाग चक्कर खा रहा था। यों तो उस दरबार में जितने भी आदमी थे सभी उन दोनों नकाबपोशों का हाल जानने के लिए बेताब हो रहे थे और दरबार बर्खास्त होने तथा अपने डेरे पर जाने के बाद भी हरएक आदमी इन्हीं दोनों नकाबपोश का खयाल और फिक्र करता था, मगर किसी की हिम्मत यह न होती थी कि उनके पीछे-पीछे जाय। हाँ ऐयार और जासूस लोग जिनकी प्रकृति ही ऐसी होती है कि खामख्वाह भी लोगों के भेद जानने की कोशिश किया करते हैं, उन दोनों नकाबपोश का हाल जानने के फेर में पड़े हुए थे।

भूतनाथ  का डेरा यद्यपि तिलिस्मी इमारत के अन्दर बलभद्रसिंह के साथ था, मगर वास्तव में वह अकेला न था। भूतनाथ के पिछले किस्से से पाठकों को मालूम हो चुका होगा कि उसके साथी, नौकर, सिपाही या जासूस लोग कम न थे, जिनसे वह समय-समय पर काम लिया करता था और जो उसके हाल-चाल की खबर रक्खा करते थे। अब यह कह देना आवश्यक है कि यहाँ भी भूतनाथ के बहुत से आदमी धीरे-धीरे आ गये हैं, जो सूरत बदलकर चारों चरफ घूमते और उसकी जरूरतों को पूरा करते हैं और उनमें से दो आदमी खास तिलिस्मी इमारत के अन्दर उसके साथ रहते हैं, जिन्हें भूतनाथ ने अपना खिदमतगार कहकर अपने पास रख लिया है और इस बात को बलभद्रसिंह भी जानते हैं।

दरबार बर्खास्त होने के बाद भूतनाथ और बलभद्रसिंह अपने डेरे पर गये और कुछ जालपान इत्यादि से छुट्टी पाकर यों बातचीत करने लगे।—

बलभद्र : ये दोनों नकाबपोश बड़े ही विचित्र मालूम पड़ते हैं।

भूतनाथ : क्या कहें कुछ अक्ल काम नहीं करती मजा तो यह है कि ये हमी लोगों की बातों को हम लोगों से भी ज्यादा जानते और समझते हैं!

बलभद्र : बेशक ऐसा ही है।

भूतनाथ : यद्यपि अभी तक इन नकाबपोशों ने मेरे साथ कुछ बुरा बर्ताव नहीं किया, बल्कि एक तौर पर मेरा पक्ष ही करते हैं, तथापि मेरा कलेजा डर के मारे सूखा जाता है, यह सोचकर कि जिस तरह आज मेरी स्त्री की एक गुप्त बात इन्होंने प्रकट कर दी, जिसे मैं भी नहीं जानता था, उसी तरह कहीं मेरा उस सन्दूकड़ी का भेद भी न खोल दें, जैपाल की दी हुई अभी तक राजा साहब के अमानत रक्खी है और जिसके खयाल ही से मेरा कलेजा हरदम काँपा करता है।

बलभद्र : ठीक है, मगर मेरा खयाल है कि नकाबपोश तुम्हारी उस सन्दूकड़ी का भेद न तो खुद ही खोलेंगे और न खुलने ही देंगे।

भूतनाथ : सो कैसे?

बलभद्र : क्या तुम उन बातों को भूल गये जो एक नकाबपोश ने भरे दरबार में तुम्हारे लिए कही थीं? क्या उसने नहीं कहा था कि भूतनाथ ने जैसे-जैसे काम किये हैं, उनके बदले में उसे मुँह-माँगा इनाम देना चाहिए और क्या इस बात को महाराज ने भी स्वीकार नहीं किया था?

भूतनाथ : ठीक है, तो इस कहने से शायद आपका मतलब यह है कि मुँह माँगा इनाम के बदले में मैं उस सन्दूकड़ी को भी पा सकता हूँ?

बलभद्र : बेशक ऐसा ही है और उन नकाबपोश ने भी इसी खयाल से वह बात कही थी, मगर अब यह सोचना चाहिए कि मुकद्दमा तै होने के पहिले माँगने का मौका क्या मिल सकता है।

भूतनाथ : मेरे दिल ने भी उस समय यही कहा था, मगर दो बातों के खयाल से मुझे प्रसन्न होने का समय नहीं मिलता।

बलभद्र : वह क्या?

भूतनाथ : एक तो यही कि मुकद्दमा होने के पहिले इनाम में उस सन्दूकड़ी के माँगने का मौका मुझे मिलेगा या नहीं और दूसरे यह कि नकाबपोश ने उस समय यह बात सच्चे दिल से कही थी या केवल जैपाल को सुनाने की नीयत से! साथ ही उसके एक बात और भी है।

बलभद्र : वह भी कह डालो।

भूतनाथ : आज आखिरी मर्तबे दूसरे नकाबपोश ने जो सूरत दिखायी थी, उसके बारे में मुझे कुछ भ्रम-सा होता है। शायद मैंने उसे कभी देखा है, मगर कहाँ और क्योंकर सो नहीं कह सकता।

बलभद्र : हाँ, उस सूरत के बारे में तो अभी तक मैं भी गौर कर रहा हूँ, मगर अक्ल तब तक कुछ ठीक काम नहीं कर सकती, जब तक उन नकाबपोश का कुछ हाल मालूम न हो जाय।

भूतनाथ : मेरी तो यही इच्छा है कि उनका असल हाल जानने के लिए उद्योग करू, बल्कि कल मैं अपने आदमियों को इस काम के लिए मुस्तैद भी कर चुका हूँ।

बलभद्र : अगर कुछ पता लगा सको तो बहुत ही अच्छी बात है, सच तो यों है कि मेरा दिल भी खुटके से खाली नहीं है।

भूतनाथ : इस समय से सन्ध्या तक और इसके बाद रात-भर मुझे छुट्टी है, यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस फिक्र में जाऊँ।

बलभद्र : कोई चिन्ता नहीं, तुम जाओ अगर महाराज का कोई आदमी खोजने आवेगा तो मैं जवाब दे लूँगा।

भूतनाथ : बहुत अच्छा।

इतना कहकर भूतनाथ उठा और अपने दोनों आदमियों में से एक को साथ लेकर मकान के बाहर हो गया।

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