लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

17 पाठक हैं

चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

सातवाँ बयान


दिन अनुमान दो घड़ी के चढ़ चुका होगा, जब राजा गोपालसिंह दो आदमियों को साथ लिये हुए धीरे-धीरे आते दिखायी पड़े। वे दोनों भैरोसिंह और इन्द्रदेव थे और पैदल थे। जब तीनों उस ठिकाने पहुँचे गये, जहाँ राजा साहब के रथ और सवार लोग थे, तब राजा साहब ने अपना घोड़ा छोड़ दिया और उसपर भैरोसिंह को सवार होने के लिए कहा तथा और सवारों को भी घोड़े पर सवार हो जाने के लिए इशारा किया, इसके बाद स्वयं एक रथ पर सवार हो गये और इन्द्रदेव को भी उस पर अपने साथ बैठा लिया, बाकी तीन रथ खाली ही गये। सवारी धीरे-धीरे जमानिया की तरफ रवाना हुई और फौजी सवार खूबसूरती के साथ राजा साहब को घेरे हुए धीरे-धीरे जैसा कि रथ जा रहा था जाने लगे। भैरोसिंह अपना घोड़ा बढ़ाकर नकली रामदीन के पास चला गया, जो उसी पंचकल्यान घोड़ी पर सवार था और उसके साथ-साथ जाने लगा। यह बात लीला को बहुत बुरी मालूम हुई, क्योंकि वह राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयारों से बहुत डरती थी। थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वह बोली—

लीला : (भैरों से) आपने राजा साहब का साथ क्यों छोड़ दिया?

भैरो : (हँसकर) तुम्हारा साथ करने के लिए, क्योंकि मैं अपने दोस्त रामदीन को अकेला नहीं छोड़ सकता।

लीला : और जब मुझे राजा साहब ने अकेले जमानिया भेजा था, तब आप कहाँ डूब गये थे?

भैरो : तब भी मैं तुम्हारे साथ था, मगर तुम्हारी नजरों से छिपा हुआ था।

लीला : (डरकर, मगर अपने को सम्हालकर) परसों तुम कहाँ थे कल कहाँ थे और आज सबेरा होने के पहिले तक कहाँ गायब थे? क्यों झूठी बातें बना रहे हो?

भैरो : परसों भी, कल भी और आज-भर भी मैं तुम्हारे साथ ही था मगर तुम्हारी नजरों से छिपा हुआ था। हाँ, जब दो घण्टे रात बाकी थी तब मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया और राजा साहब से जा मिला। अब मैं फिर तुम्हारे साथ जा रहा हूँ, क्योंकि राजा साहब का ऐसा ही हुक्म है। (हँसकर) क्योंकि राजा साहब ने सुना है कि तुम्हारा इरादा जमानिया पहुँचने के पहिले ही भाग जाना है!

लीला : (अपने उछलते कलेजे को रोककर) यह उनसे किसने कहा?

भैरो : मैंने?

लीला : और तुम्हें किसने खबर दी?

भैरो : तुम्हारे दिल ने।

लीला : मानो मेरे दिल के आप भेदिया ठहरे!

भैरो : बेशक, ऐसा ही है। अगर तुम्हें ऐयारी का ढंग पूरा-पूरा मालूम होता, तब तुम्हारा दिल मजबूत होता, मगर तुम्हारी ऐयारी अभी बिल्कुल कच्ची है। अहा, एक बात तुमसे कहना तो मैं भूल ही गया, जिस रात मायारानी, राजा बीरेन्द्रसिंह के लश्कर से भाग गयी थी, उस रोज सवेरा होने से पहिले ही यह खबर राजा गोपालसिंह को मालूम हो गयी।

लीला : (काँपती हुई और लड़खड़ाती हुआ आवाज में) यह तो मुझे भी मालूम है, मगर तुम्हारे इस कहने का मतलब क्या है, सो समझ में नहीं आता।

भैरो : मतलब यही है कि तुम अपनी सूरत साफ करो और मेरे साथ राजा साहब के पास चलो, क्योंकि अब असली रामदीन के सामने तुम्हारा रामदीन बने रहना मुनासिब नहीं है।

लीला : असली रामदीन अब कहाँ...!

जल्दी में लीला इतना कह तो गयी, मगर फिर उसने जुबान बन्द कर ली। भैरोसिंह की चलती-फिरती बातों ने उसका कलेजा हिला दिया और वह समझ गयी कि अब मेरा नसीब मुझे धोखा दिया चाहता है, मेरा भेद खुल गया, और अब मेरे कैद होने में ज्यादे देर नहीं है। अब उसके दिल ने भी कहा कि वास्तव में कल ही राजा साहब को तुझ पर शक हो गया था, अगर तू कल ही भाग जाती तो अच्छा था, मगर अब तेरा भागना भी कठिन है। लीला ने कुछ और सोच-विचारकर के भैरोसिंह से कहा, "तुम जरा निराले में चलकर मेरी एक बात सुन लो, बेहतर होगा कि हम दोनों आदमी घोड़ा बढ़ाकर जरा आगे निकल चलें, मैं जो बात कहा चाहता हूँ, उसे सुनकर तुम बहुत खुश होवोगे।"

भैरो : न तो मैं तुम्हारी कुछ सुन सकता हूँ, और न तुम्हें छोड़ सकता हूँ। हाँ एक बात तुम्हें और भी कहे देता हूँ, जिसे सुनकर तुम्हारे दिल का खुटका निकल जायगा, वह यह है कि जब राजा साहब ने दीवान साहब के नाम की चीठी देकर असली रामदीन को जमानिया भेजा था तो जुबानी कहा दिया था कि ‘इस चीठी में हमने दो सौ सवार भेजने के लिए लिखा है, मगर तुम केवल बीस सवार अपने साथ लाना और जिस दिन हमने माँगा है, उसके एक दिन बाद आना'। कहो अब तो बहुतसी बातें तुम्हारी समझ में आ गयी होगीं?

इतना कह भैरोसिंह ने लीला का हाथ पकड़ लिया और राजा साहब की तरफ चलने के लिए कहा, मगर लीला को उधर जाना मंजूर न था, इसलिए उसने अपनी घोड़ी को न रोका और झटका देकर अपना हाथ छुड़ाना चाहा, मगर ऐसा न कर सकी, भैरोसिंह ने उसे खींचकर जमीन पर गिरा दिया। उस समय भैरोसिंह को मालूम हुआ कि यह मर्द नहीं, औरत है।

भैरोसिंह की यह कार्रवाई देखकर सभों के कान खड़े हो गये। सवारों ने घोड़ा रोक दिया, राजा साहब की सवारी (रथ) खड़ी हो गयी, कई सवार अपने घोड़े पर से कूदकर भैरोसिंह के पास चले आये और इन्द्रदेव भी रथ से उतरकर उसके पास जा पहुँचे। आज्ञानुसार लीला की मुश्कें बाँध ली गयीं और पानी मँगाकर उसका चेहरा साफ किया गया और तब लीला को सभों ने पहचान लिया। लीला राजा गोपालसिंह के पास लायी गयी और भैरोसिंह ने सब हाल कहा, जिसे सुन राजा साहब हँस पड़े और बोले, "अब इन्द्रदेव जैसा कहें वैसा करो।"

इन्द्रदेव की आज्ञानुसार लीला रस्सियों में जकड़कर एक खाली रथ पर बैठा दी गयी और कई सवार उसकी निगरानी पर मुस्तैद किये गये।

अब सवारी तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुई। दोपहर के बाद जब सवारी जमानिया के पास पहुँची, तब इन्द्रदेव ने राजा साहब से धीरे-धीरे कुछ कहा और रथ से उतरकर पैदल ही मैदान का रास्ता लिया और देखते-देखते न मालूम कहाँ चले गये। सवारी खास बाग के दरवाजे पर पहुँची और राजा साहब रथ से उतरकर भैरोसिंह को साथ लिये हुए बाग के अन्दर चले गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book