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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

नौवाँ बयान


जिस समय राजा गोपालसिंह खास बाग के दरवाजे पर पहुँचे, उस समय उनके दीवान साहब भी वहाँ हाजिर थे। नकली रामदीन अर्थात् लीला इनके हवाले कर दी गयी। भैरोसिंह के सवाल करने पर उन्होंने कहा कि इस लीला ने चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुँचाया है, मगर हम नहीं कह सकते कि वास्तव में वे कौन थे। अस्तु, राजा साहब और भैरोसिंह को यह तो मालूम हो गया हो गया कि चार आदमी भी इस बाग के अन्दर घुसे हैं, जो हमारे दुश्मन ही होंगे, मगर उन्हें उन पाँच-सौ फौजी सिपाहियों की शायद ही खबर हो, जिन्हें मायारानी ने गुप्त रीति से बाग के अन्दर कर लिया था। पहिले दफे जब मायारानी को गोपालसिंह ने छकाया था, तब वह खुले तौर पर बाग में रहती थी, मगर अबकी दफे तो वह उस भूल भूलैया बाग में जाकर ऐसा गायब हुई है कि उसका पता लगाना भी कठिन होगा। दीवान साहब ने पूछा भी कि ‘अगर हुक्म हो तो बाग में तलाशी ली जाय और उन आदमियों का पता लगाया जाय, जिन्हें लीला ने इस बाग में पहुँचाया है', मगर राजा साहब ने इसके जवाब में सिर हिलाकर जाहिर कर दिया कि यह बात उन्हें स्वीकार नहीं है।

कुछ दिन रहते ही राजा गोपालसिंह बाग के दूसरे दर्जे में केवल भैरोसिंह को साथ लेकर गये, और बाग के अन्दर चारों तरफ सन्नाटा पाया। इस समय भैरोसिंह और राजा गोपालसिंह दोनों ही के हाथ में तिलिस्मी खंजर मौजूद थे।

खास बाग के दूसरे दर्जे में दो कुएँ थे, जिनमें पानी बहुत ज्यादा रहता था, यहाँ तक कि इस बाग के पेड़-पत्तों को सींचने और छिड़काव का काम इन दोनों में से किसी एक कुएँ ही से चल सकता था, मगर सींचने के समय दूर और नजदीक का खयाल करके या शायद और किसी सबब से बनवाने वाले ने दो बड़े-बड़े जंगी कूएँ बनवाये थे, परन्तु ये दोनों कूएँ भी करीगरी और ऐआरी से खाली न थे।

भैरोसिंह और गोपालसिंह छिपते और घूमते हुए पूरब तरफ वाले कूएँ पर पहुँचे, जिसका घेरा बहुत बड़ा था और नीचे उतरने तथा चढ़ने के लिए कुएँ की दीवार में लोहे की कड़ियाँ लगी हुई थीं। भैरोसिंह और गोपालसिंह दोनों आदमी कड़ियों के सहारे इस कूएँ में उतर गये।

किसी ठिकाने छिपी हुए मायारानी इस तमाशे को देख रही थी। गोपालसिंह और भैरोसिंह को आते देख वह बहुत खुश हुई और उसे निश्चय हो गया कि अब हम लोग गोपालसिंह को मार लेंगे। जिस जगह वह बैठी हुई थी, वहाँ पर माधवी, कुबेरसिंह, भीमसेन और ऐयारों के अतिरिक्त बीस आदमी फौजी सिपाहियों में से भी मौजूद थे, और बाकी फौजी सिपाही तहखानों में छिपाये हुए थे। पहिले तो मायारानी ने चाहा कि केवल हम ही लोग बीस सिपाहियों के साथ जाकर गोपालसिंह को गिरफ्तार कर लें, मगर जब उसे कृष्णजिन्नवाली बात याद आयी और यह खयाल हुआ कि गोपालसिंह के पास वह तिलिस्मी खंजर और कवच जरूर होगा जो कि रोहतासगढ़ में उनके पास उस समय मौजूद था, जब शेरअली और दारोगा के साथ हम लोग वहाँ गये थे, तब उसकी हिम्मत टूट गयी और बिना कुल फौजी सिपाहियों को साथ लिये गोपालसिंह के पास जाना उचित न जाना। इसी बीच में उसके देखते-देखते गोपालसिंह कूएँ के अन्दर चले गये।

इस तिलिस्मी बाग के अन्दर आने तथा यहाँ से बाहर जानेवाला दरवाजा जिस तरह बन्द होता है, इसका हाल उस समय लिखा जा चुका है, जब पहिले दफा इस बाग में मायारानी के ऊपर आफत आयी थी और मायारानी ने सिपाहियों के बागी हो जाने पर बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया था। अस्तु, इस समय भी उसी ढंग से मायारानी ने बाग का दरबाजा बन्द कर दिया और इसके बाद कुल सिपाहीयों को तहखाने में से निकालकर माधवी, भीमसेन और कुबेरसिंह तथा ऐयारों को साथ लिये उस कूएँ पर पहुँची, जिसके अन्दर भैरोसिंह को साथ लिये हुए राजा गोपालसिंह उतर गये थे।

मायारानी ने सोचा था कि आखिर गोपालसिंह उस कूएँ के बाहर निकलेंगे ही, उस समय हम लोग उन्हें सहज से ही मार लेंगे, बल्कि कुएँ से बाहर निकलने की मोहलत ही न देंगे—इत्यादि, मगर जब बहुत देर हो गयी और रात हो जाने पर भी गोपालसिंह कूएँ के बाहर न निकले तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ। वह खुद कूएँ के अन्दर झाँककर देखने लगी और उसी समय चौंककर माधवी से बोली—

माया : क्यों बहिन. आज ही तुमने भी देखा था कि इस कूएँ में पानी कितना ज्यादा था!

माधवी : बेशक मैंने देखा था कि बीस हाथ से ज्यादे दूरी पर पानी नहीं है, तो क्या इस समय पानी कम जान पड़ता है?

माया : कम क्या मैं तो समझती हूँ कि इस समय इसमें कुछ भी पानी नहीं है और कूआँ सूखा पड़ा है।

माधवी : (ताज्जुब से) ऐसा नहीं हो सकता। एक पत्थर इसमें फेंककर देखो।

माया : आओ, तुम ही देखो।

माधवी ने अपने हाथ से ईंट का टुकड़ा कूएँ के अन्दर फेंका और उसकी आवाज पर गौर करके बोली।

माधवी : बेशक इसमें पानी कुछ भी नहीं है, केवल कीचड़ मात्र है। तो क्या तुम नहीं जानती कि इसके अन्दर पानी के निकास का कोई रास्ता तथा आदमियों के आने-जाने के लिए कोई सुरंग या दरवाजा है या नहीं?

माया : मुझे एक दफे गोपालसिंह ने कहा था कि इस कूएँ के नीचे एक तहखाना है, जिसमें तरह-तरह के तिलिस्मी हर्बे और ऐयारी के काम की अपूर्व चीजें हैं।

माधवी : बेशक यही बात ठीक होगी और उन्हीं चीजों में से कुछ लाने के लिए गोपालसिंह गये होंगे।

माया : शायद ऐसा ही हो!

माधवी : तो बस इससे बढ़कर और कोई तरकीब नहीं हो सकती कि यह कूआँ पाट दिया जाय, जिसमें गोपालसिंह को फिर दुनिया का मुँह देखना नसीब न हो।

माया : निःसन्देह यह बहुत अच्छी राय है। अस्तु, जहाँ तक हो सके इसे कर ही देना चाहिए।

इस समय कुबेरसिंह की फौज टिड्डियों की तरह इस बाग में सब तरफ फैली हुई हुक्म का इन्तजार कर रही थी। माधवी ने अपनी राय भीमसेन और कुबेरसिंह से कही और उनकी आज्ञानुसार फौजी आदमियों ने जमीन खोदकर मिट्टी निकालने और कूआँ पाटने में हाथ लगा दिया।

पहर रात जाते तक कूआँ बखूबी पट गया और उस समय मायारानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि अब मुझे गोपालसिंह का कुछ भी डर न रहा।

फौजी सिपाहियों को खुले मैदान बाग में पड़े रहने की आज्ञा देकर भीमसेन, कुबेरसिंह और माधवी तथा ऐयारों को साथ लिये हुए मायारानी अपने उस खास कमरे की छत पर बेफिक्र और खुशी के साथ चली गयी, जिसमें आज के कुछ दिन पहिले मालिकाना ढंग से रहती थी।

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