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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

दूसरा बयान


रात पहर-भर से ज्यादे जा चुकी है। महल के अन्दर एक सजे हुए कमरे में एक तरफ रानी चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा बैठी हुई है, और उनसे थोड़ी ही दूर पर राजा बीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह और भैरोसिंह बैठे आपुस में कुछ बातचीत कर रहे हैं।

चन्द्रकान्ता : (बीरेन्द्र से) सच्चा-सच्चा हाल मालूम होना तो दूर रहा, मुझे इस बात का किसी तरह गुमान भी न हुआ। इस समय मैं दुलहिनों की सोहागरात का इन्तजाम देख-सुनकर यहाँ आयी, और दिन-भर की थकावट से सुस्त होकर पड़ रही, जी में आया कि घण्टे-दो-घण्टे सो रहूँ, मगर इसबीच में चपला बहिन आ पहुँचीं और बोलीं, ‘‘लो बहिन, मैं तुम्हें एक अनूठा हाल सुनाती हूँ, जिसकी अब तक हम लोगों को कुछ खबर ही न थी!’’ बस इतना कहकर बैठ गयी और कहने लगीं कि ‘कमलिनी और लाडिली की शादी तिलिस्म के अन्दर ही इन्द्रजीत और आनन्द के साथ हो चुकी है, जिसके बारे में अब तक हम लोगों को किसी ने कुछ भी नहीं कहा, इस लड़के (भैरोसिंह) ने मुझसे कहा है’। सुनते ही मैं धक्क हो गयी कि या राम यह कौन-सी बात थी, जिसे अभी तक सब कोई छिपाये बैठे रहे!!

चपला : (भैरोसिंह की तरफ इशारा करके) सामने तो बैठा हुआ है, पूछिये कि इस समय के पहिले कुछ कहा था! यद्यपि दोनों की शादियाँ इसके सामने ही तिलिस्म के अन्दर हुई थीं।

बीरेन्द्र : मुझे भी इस विषय में किसी ने कुछ नहीं कहा था, अभी थोड़ी देर हुई कि गोपालसिंह ने यह सब हाल पिताजी से बयान किया, तब मालूम हुआ।

चन्द्रकान्ता : यही सुनके तो मैंने आपको तकलीफ दी, क्योंकि आपकी जुबानी सुने बिना मेरी दिलजमई नहीं हो सकती।

बीरेन्द्र : जो कुछ तुमने सुना सब ठीक है।

चन्द्रकान्ता: मजा तो यह है कि लड़कों ने भी मुझसे इस बात की कुछ चर्चा नहीं की।

बीरेन्द्र : लड़कों को तो खुद ही इस बात की खबर नहीं है कि उनकी शादी कमलिनी और लाडिली के साथ हुई थी।

चन्द्रकान्ता : यह तो आप और भी ताज्जुब की बात कहते हैं! यह भला कैसे हो सकता है कि जिनकी शादी हो उन्हीं को पता न लगे कि मेरी शादी हो गयी है? इस पर कौन विश्वास करेगा!

बीरेन्द्र : बात ही कुछ ऐसी हो गयी थी, और यह शादी जान-बूझकर किसी मतलब से छिपायी गयी थी। (गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) अब ये खुलासा हाल तुमसे बयान करेंगे, तब तुम समझ जाओगी कि ऐसा क्यों हुआ।

गोपाल : मैं सब हाल आपसे खुलासा बयान करता हूँ, और आशा करता हूँ कि आप मेरा कसूर माफ करेंगी, क्योंकि यह सब मेरी ही करतूत है और मैंने ही यह शादी करायी है।

चन्द्रकान्ता : अगर तुमने ऐसा किया तो छिपाने की क्या जरूरत थी? क्या हम लोग तुमसे रंज हो जाते? या हम लोग इस बात को नहीं समझते कि जो कुछ तुम करोगे अच्छा ही समझके करोगे!

गोपाल : ठीक है, मगर किया क्या जाय, इस बात को छिपाये बिना काम नहीं चलता था, यही तो सबब हुआ कि खुद दोनों कुमारों को भी इस बात का पता न लगा कि उनकी शादी फलाने के साथ हो गयी है।

चन्द्रकान्ता : आखिर ऐसा किया क्यों गया सो तो कहो!

गोपाल : इसका सबब यह है कि एक दिन कमला मेरे पास आयी और बोली कि ‘मैं’ आपसे एक जरूरी बात कहती हूँ, जिस पर आपको विशेष ध्यान देना होगा’। मैंने पूछा–‘‘क्या!’’ जिस पर उसने जवाब दिया कि कमलिनी ने जो कुछ अहसान हम लोगों पर, खास करके दोनों कुमारों तथा किशोरी और कामिनी पर किये हैं, वह किसी से छिपे नहीं हैं। किशोरी का खयाल है कि ‘इसका बदला किसी तरह अदा हो ही नहीं सकता’ और बात भी ऐसी ही है। अस्तु, किशोरी ने बात-ही-बात में अपने दिल का हाल मुझसे भी कह दिया और इस बारे में जो कुछ उसने सोच रक्खा था, वह भी बयान किया। किशोरी कहती है कि अगर मैं शादी न करूँ या शादी होने के पहिले ही इस दुनिया से उठ जाऊँ तो उसके अहसान और ताने से कुछ बच सकती हूँ। इस विषय पर जब मैंने किशोरी को बहुतकुछ समझाया, तो बोली की खैर, अगर मेरी शादी के पहिले कमलिनी की शादी कुँअर इन्द्रजीतसिंह के साथ हो जायेगी तब मैं सुख से अपनी जिन्दगी बिता सकूँगी और उसके अहसान से भी हल्की हो जाऊँगी, क्योंकि ऐसा होने से कमलिनी को पटरानी की पदवी मिलेगी, और उसी का लड़का गद्दी का मालिक समझा जायेगा। मैं छोटी रानी और कमलिनी की लौंडी होकर रहूँगी तभी मेरे दिल को तस्कीन होगी और मैं समझूँगी कि कमलिनी के अहसान का बोझ मेरे सिर से उतर गया।

चन्द्रकान्ता : शाबाश! शाबाश!!

बीरेन्द्र : बेशक, किशोरी ने बड़े हौसले की और लासानी बात सोची!

चपला : बेशक, यह साधारण बात नहीं है, यह बड़े कलेजेवाली औरतों का काम है, और इससे बढ़कर किशोरी कुछ कर ही नहीं सकती थी।

गोपाल : मैंने जब कमला की जबानी यह बात सुनी तो दंग हो गया, और मन में किशोरी की तारीफ करने लगा। सच तो यों है कि यह बात मेरे दिल में भी जम गयी। अस्तु, मैंने कमला से वादा तो कर दिया कि ‘ऐसा ही होगा’ मगर तरद्दुद में पड़ गया कि यह काम क्योंकर पूरा होगा, क्योंकि यह बात बड़ी ही कठिन बल्कि असम्भव थी कि इन्द्रजीतसिंह और कमलिनी इस राय को मंजूर करें। इसके अतिरिक्त यह भी उम्मीद नहीं हो सकती थी कि हमारे महाराज इस बात को स्वीकार कर लेंगे।

भैरो : बेशक यह कठिन काम था, इन्द्रजीतसिंह सिंह इस बात को कभी मंजूर न करते।

गोपाल : कई दिन के सोच-विचार के बाद मैंने और भैरोसिंह ने मिलकर एक तरकीब निकाल ली और किसी-न-किसी तरह कमलिनी और लाडिली को इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दोनों की शादी इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के साथ कर दी। उन दिनों कमलिनी के पिता बलभद्रसिंहजी भूतनाथ की मदद से छूटकर यहाँ (अर्थात् बगुलेवाले तिलिस्मी मकान में) आ चुके थे। अस्तु, मैं तिलिस्म के अन्दर-ही-अन्दर यहाँ आया और बलभद्रसिंहजी को कन्यादान करने के लिए समझा-बुझाकर जमानिया ले लया । (१. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति-5, अट्ठारहवाँ भाग, आठवाँ बयान।)

उस दिन भूतनाथ बहुत परेशान हुआ था, और भैरोसिंह मेरे साथ था। हम लोग पहले जब इस मकान में आये थे, तो भूतनाथ और बलभद्रसिंहजी के नाम की एक-एक चीठी दोनों की चारपाई पर रखके चले गये थे। बलभद्रसिंहजी की चीठी में उनकी दिलजमई के लिए एक अगूँठी भी रक्खी थी, जो उन्होंने ब्याह के पहिले मुझे बतौर सगुन के दी थी। इसके बाद दूसरे दिन फिर पहुँचे और भूतनाथ को अपना पूर-पूरा परिचय देकर बलभद्रसिंहजी को ले गये। उनके जाने का सबब भूतनाथ को ठीक-ठीक कह दिया था, मगर साथ ही इसके इस बात की भी ताकीद कर दी थी कि यह हाल किसी को मालूम न होवे।

इतना कहते-कहते गोपालसिंह कुछ देर के लिए रुके और फिर इस तरह कहने लगे–‘‘पहिले तो मुझे इस बात की चिन्ता थी कि बलभद्रसिंह मेरा कहना मानेंगे या नहीं, मगर उम्होंने इस बात को बड़ी खुशी से मंजूर कर लिया। अपनी लड़कियों से मिलकर वे बहुत प्रसन्न हुए और हम लोगों पर जो कुछ आफतें बीत चुकी थीं, उन्हें सुन-सुनकर अफसोस करते रहे, फिर अपनी बीती सुनाकर प्रसन्नतापूर्वक हम लोगों के काम में शरीक हुए, अर्थात् हँसी-खुशी के साथ उन्होंने कमलिनी और लाडिली का कन्यादान कर दिया। (. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति-5, अट्ठारहवाँ भाग, बारहवाँ बयान।)

इस काम में भैरोसिंह को भी कम तरद्दुद नहीं उठाना पड़ा, बल्कि दोनों कुमार इनसे रंज भी हो गये थे, क्योंकि इनकी जुबानी असल बातों का उन्हें पता नहीं लगता था। अस्तु, शादी हो जाने के बाद इस बात का बन्दोबस्त किया गया कि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह इस अनूठे ब्याह को भूल जायें तथा इन्द्रानी और आनन्दी से मिलने की उम्मीद न रक्खें।’’

इसके बाद राजा गोपालसिंह ने और भी बहुत-सा हाल बयान किया, जो हम सन्तति के अट्ठारहवें भाग में लिख आये हैं और सब बातें सुनकर अन्त में चन्द्रकान्ता ने कहा, ’’खैर, जो हुआ अच्छा ही हुआ, हम लोगों के लिए तो जैसे किशोरी और कामिनी हैं, वैसे ही कमलिनी और लाडिली हैं, मगर किशोरी के नाना को यदि इस बात का कुछ रंज हो तो ताज्जुब नहीं।’’

बीरेन्द्र : पिताजी भी यही कहते थे। मगर इसमें कोई शक नहीं कि किशोरी ने परले सिरे के हिम्मत दिखलायी!

गोपाल : साथ ही इसके यह भी समझ लीजिए कि कमलिनी ने भी इस बात को सहज ही में स्वीकार नहीं कर लिया, इसके लिए भी हम लोगों को बहुतकुछ उद्योग करना पड़ा। बात यह है कि कमलिनी भी किशोरी को जान से ज्यादे चाहती और मानती है।

चन्द्रकान्ता : मगर मुझे इस बात का अफसोस जरूर है कि इन दोनों की शादी में किसी तरह की तैयारी नहीं की गयी और न कुछ धूमधाम ही हुई।

इसके बाद बहुत देर तक इन सभों में बातचीत होती रही।

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