उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जागेश्वरी झुँझलाकर बोली–उससे तुम्हीं कहो, मुझसे तो न कहा जायगा।
सहसा रमानाथ टेनिस-रैकेट लिये बाहर से आया। सफेद टेनिस शर्ट था, सफेद पतलून, कैनवस का जूता, गोरे रंग और सुन्दर मुखाकृति पर इस पहनावे ने रईसों की शान पैदा कर दी थी। रूमाल में बेले के गजरे लिये हुए था। उससे सुगन्ध उड़ रही थी। माता-पिता की आँखें बचाकर वह ज़ीने पर जाना चाहता था, कि जागेश्वरी ने टोका–इन्हीं के तो सब काँटे बोये हुए हैं, इनसे क्यों नहीं सलाह लेते? (रमा से) तुमने नाच-तमाशे में बारह-तेरह सौ रुपये उड़ा दिये, बतलाओ सराफ को क्या जवाब दिया जाय? बड़ी मुश्किलों से कुछ गहने लौटाने पर राजी हुआ; मगर बहू के गहने माँगे कौन? यह सब तुम्हारी ही करतूत है।
रमानाथ ने इस आक्षेप को अपने ऊपर से हटाते हुए कहा–मैंने क्या खर्च किया? जो कुछ किया बाबू जी ने किया। हाँ, जो कुछ मुझसे कहा गया, वह मैंने किया।
रमानाथ के कथन में बहुत कुछ सत्य था। यदि दयानाथ की इच्छा न होती, तो रमा क्या कर सकता था? जो कुछ हुआ, उनकी अनुमति से हुआ। रमानाथ के इल्ज़ाम रखने से तो कोई समस्या हल न हो सकती थी। बोले–मैं तुम्हें इल्जाम नहीं देता भाई। किया तो मैंने; मगर यह बला तो किसी तरह सिर से टालनी चाहिए। सराफ का तकाज़ा है। कल उसका आदमी आवेगा। उसे क्या जवाब दिया जायेगा? मेरी समझ में तो यही एक उपाय है कि उतने रुपये के गहने उसे लौटा दिये जायें। गहने लौटा देने में भी वह झंझट करेगा; लेकिन दस-बीस के लोभ में लौटाने पर राजी हो जायेगा। तुम्हारी क्या सलाह है?
रमानाथ ने शरमाते हुए कहा–मैं इस विषय में क्या सलाह दे सकता हूँ; मगर मैं इतना कह सकता हूँ कि इस प्रस्ताव को वह खुशी से मंजूर न करेगी। अम्मा तो जानती हैं कि चढ़ावे में चन्द्रहार न जाने से उसे कितना बुरा लगता था। प्रण कर लिया है, जब तक चन्द्रहार न बन जायेगा, कोई गहना न पहनूँगी।
जागेश्वरी ने अपने पक्ष का समर्थन होते देख, खुश होकर कहा–यही तो मैं इनसे कह रही हूँ।
रमानाथ–रोना-धोना मच जायगा और इसके साथ घर का परदा भी खुल जायगा।
दयानाथ ने माथा सिकोड़कर कहा–उससे पर्दा रखने की जरूरत ही क्या। अपनी यथार्थ स्थिति को वह जितनी ही जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा।
रमानाथ ने जवानों के स्वभाव के अनुसार जालपा से खूब जीट उड़ायी थी। खूब बढ़-बढ़कर बातें की थीं। ज़मींदारी है, उससे कई हजार का नफा है। बैंक में रुपये हैं, उनका सूद आता है। जालपा से अब अगर गहने की बात कही गयी, तो रमानाथ को वह पूरा लबाड़िया समझेगी। बोला–परदा तो एक दिन खुल ही जायेगा, पर इतनी जल्दी खोल देने का नतीजा यही होगा कि वह हमें नीच समझने लगेगी। शायद अपने घरवालों को भी लिख भेजे। चारों तरफ बदनामी होगी।
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