उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जालपा ने स्थिर भाव से कहा–हाँ, किसी तरह नहीं।
रतन ने विरक्त होकर मुँह फेर लिया। जालपा ने बेग उठा लिया और तेजी से घाट से उतरकर जल-तट तक पहुँच गयी, फिर बेग को उठाकर पानी में फेंक दिया। अपनी निर्बलता पर यह विजय पाकर उसका मुख प्रदीप्त हो गया। आज उसे जितना गर्व और आनन्द हुआ, उतना इन चीजों को पाकर भी नहीं हुआ था। उन असंख्य प्राणियों में जो इस समय स्नान-ध्यान कर रहे थे, कदाचित् किसी को अपने अन्तःकरण में प्रकाश का ऐसा अनुभव न हुआ होगा। मानों प्रभात की सुनहरी ज्योति उसके रोम-रोम में व्याप्त हो रही है।
जब वह स्नान करके ऊपर आयी, तो रतन ने पूछा–डुबा दिया?
जालपा–हाँ।
रतन–बड़ी निष्ठुर हो।
जालपा–यही निष्ठुरता मन पर विजय पाती है। अगर कुछ दिन पहले निठुर हो जाती, तो आज यह दिन क्यों आता।
कार चल पड़ी।
[२५]
रमानाथ को कलकत्ते आये हुए दो महीने के ऊपर हो गये हैं। वह अभी तक देवीदीन के घर पड़ा हुआ है। उसे हमेशा यही धुन सवार रहती है कि रुपये कहाँ से आवें ! तरह-तरह के मन्सूबे बाँधता है, भाँति-भाँति की कल्पनाएँ करता है, पर घर से बाहर नहीं निकलता। हाँ, जब खूब अँधेरा हो जाता है, तो वह एक बार मुहल्ले के वाचनालय में जरूर जाता है। अपने नगर और प्रान्तों के समाचारों के लिए उसका मन सदैव उत्सुक रहता है। उसने वह नोटिस देखी, जो दयानाथ ने पत्रों में छपवायी थी; पर उस पर विश्वास न आया। कौन जाने, पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए माया रची हो। रुपये भला किसी ने चुकाये होंगे? असम्भव !
एक दिन उसी पत्र में रमानाथ को जालपा का एक खत छपा मिला; जालपा ने आग्रह और याचना से भरे हुए शब्दों में उसे घर लौट आने की प्रेरणा की थी। उसने लिखा था–तुम्हारे जिम्मे किसी का कुछ बाकी नहीं है, कोई तुमसे कुछ न कहेगा। रमा का मन चंचल हो उठा; लेकिन तुरन्त ही उसे खयाल आया–यह भी पुलिस की शरारत होगी। जालपा ने यह पत्र लिखा, इसका क्या प्रमाण है? अगर यह भी मान लिया जाये कि रुपये घर वालों ने अदा कर दिये होंगे, तो क्या इस दशा में भी वह घर जा सकता है। शहर भर में उसकी बदनामी हो ही गयी होगी; पुलिस में इत्तिला की ही जा चुकी होगी। उसने निश्चय किया कि मैं नहीं जाऊँगा। जब तक कम-से-कम पाँच हजार रुपये हाथ में न हो जायेंगे, घर जाने का नाम न लूँगा। और रुपये नहीं दिये गये, पुलिस मेरी खोज में है, तो कभी घर न जाऊँगा। कभी नहीं।
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