उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमा ने सच्चे दिल से कहा–दादा, तुम वीर हो, और वे दोनों लड़के भी सच्चे योद्धा थे। तुम्हारे दर्शनों से आँखें पवित्र होती हैं।
देवीदीन ने इस भाव से देखा मानो इस बड़ाई को वह बिलकुल अतिशयोक्ति नहीं समझता। शहीदों की शान से बोला–इन बड़े-बड़े आदमियों के किये कुछ न होगा। इन्हें बस रोना आता है, छोकरियों की भांति बिसूरने के सिवा इनसे और कुछ नहीं हो सकता। बड़े-बड़े देस-भगतों को बिना विलायती सराब के चैन नहीं आता। उनके घर में जाकर देखो, तो एक भी देसी चीज न मिलेगी। दिखाने को दस-बीस कुरते गाढ़े के बनवा लिये, घर का और सब सामान विलायती है। सब के सब भोग-विलास में अन्धे हो रहे हैं, छोटे भी और बड़े भी। उस पर दावा यह है कि देश का उद्धार करेंगे। अरे तुम क्या देश का उद्धार करोगे ! पहले अपना उद्धार तो कर लो। गरीबों को लूटकर विलायत का घर भरना तुम्हारा काम है। इसीलिए तुम्हारा इस देश में जन्म हुआ है। हाँ, रोये जाव, विलायती सराबें उड़ाओ, विलायती मोटरें दौड़ाओ, विलायती मुरब्बे और अचार चक्खो, विलायती बरतनों में खाओ, विलायती दवाइयाँ पियो, पर देश के नाम को रोये जाव। मुदा इस रोने से कुछ न होगा। रोने से माँ दूध पिलाती है, सेर अपना सिकार नहीं छोड़ता। रोओ उसके सामने, जिसमें दया और धरम हो। तुम धमकाकर ही क्या कर लोगे? जिस धमकी में कुछ दम नहीं है, उस धमकी की परवाह कौन करता है। एक बार यहाँ बड़ा भारी जलसा हुआ। एक साहब बहादुर खड़े होकर खूब उछले-कूदे, जब वह नीचे आये, तब मैंने उनसे पूछा–साहब, सच बताओ, जब तुम सुराज का नाम लेते हो, तो उसका कौन सा रूप तुम्हारी आँखों के सामने आता है? तुम भी बड़ी-बड़ी तलब लोगे; तुम भी अँग्रेजों की तरह बँगलों में रहोगे, पहाड़ों की हवा खाओगे, अँग्रेजी ठाठ बनाये घूमोगे, इस सुराज से देश का क्या कल्यान होगा ! तुम्हारी और तुम्हारे भाई-बन्दों की जिन्दगी भले आराम और ठाठ से गुजरे; पर देश का तो कोई भला न होगा। बस, बगलें झाँकने लगे। तुम दिन में पाँच बेर खाना चाहते हो, और वह भी बढ़िया माल; गरीब किसान को एक जून सूखा चबेना भी नहीं मिलता। उसी का रक्त चूसकर तो सरकार तुम्हें हुद्दे देती है। तुम्हारा ध्यान कभी उनकी ओर जाता है? अभी तुम्हारा राज नहीं है, तब तो तुम भोग-बिलास पर इतना मरते हो, जब तुम्हारा राज हो जायेगा, तब तो तुम गरीबों को पीसकर पी जाओगे।
रमा भद्र-समाज पर यह आक्षेप न सुन सका। आखिर वह भी तो भद्र-समाज का ही एक अंग था। बोला–यह बात तो नहीं है दादा, कि पढ़े-लिखे लोग किसानों का ध्यान नहीं करते। उनमें से कितने खुद किसान थे, या हैं। उन्हें अगर विश्वास हो जाये कि हमारे कष्ट उठाने से किसानों का कोई उपकार होगा और बचत होगी, वह किसानों के लिए खर्च की जायेगी, तो वह खुशी से कम वेतन पर काम करेंगे; लेकिन जब वह देखते हैं कि बचत दूसरे हड़प जाते हैं, तो वह सोचते हैं, अगर दूसरों को ही खाना है, तो हम क्यों न खायें?
देवी–तो सुराज मिलने पर दस-दस, पाँच-पाँच हजार के अफसर नहीं रहेंगे? वकीलों की लूट नहीं रहेगी? पुलिस की लूट भी बन्द हो जायेगी?
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