उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
438 पाठक हैं |
ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रतन ने इसके जवाब में भी यही कह दिया–अच्छा तो होगा। वह उस मानसिक दुर्बलता की दशा में थी, जब मनुष्य को छोटे-छोटे काम भी असूझ मालूम होने लगते हैं। मणिभूषण की कार्य-कुशलता ने एक प्रकार से उसे पराभूत कर दिया था। इस समय जो उसके साथ थोड़ी सी भी सहानुभूति दिखा देता, उसी को वह अपना शुभचिन्तक समझने लगती। शोक और मनस्ताप ने उसके मन को इतना कोमल और नर्म बना दिया था कि उस पर किसी की भी छाप पड़ सकती थी। उसकी सारी मलिनता और भिन्नता मानो भस्म हो गयी थी; वह सभी को अपना समझती थी। उसे किसी पर सन्देह न था, किसी से शंका न थी। कदाचित् उसके सामने कोई चोर भी उसकी सम्पत्ति का अपहरण करता, तो वह शोर न मचाती।
[३२]
षोड़शी के बाद से जालपा ने रतन के घर आना-जाना कम कर दिया था। केवल एक बार घंटे-दो-घंटे के लिए चली जाया करती थी। इधर कई दिनों से मुंशी दयानाथ को ज्वर आने लगा था। उन्हें ज्वर में छोड़कर कैसे जाती। मुंशीजी को ज़रा भी ज्वर आता, तो वह बक-झक करने लगते थे। कभी गाते, कभी रोते, कभी यमदूतों को अपने सामने नाचते देखते। उनका जी चाहता कि सारा घर मेरे पास बैठा रहे, सम्बन्धियों को भी बुला लिया जाय, जिसमें वह सबसे अन्तिम भेंट कर लें। क्योंकि इस बीमारी से बचने की उन्हें आशा न थी। यमराज स्वयं उनके सामने विमान लिये खड़े थे। जागेश्वरी और सब कुछ कर सकती थी, उनकी बक-झक न सुन सकती थी। ज्योंही वह रोने लगते, वह कमरे से निकल जाती। उसे भूत-बाधा का भ्रम होता था।
मुंशीजी के कमरे में कई समाचार-पत्रों के फाइल थे। यही उन्हें एक व्यसन था। जालपा का जी वहाँ बैठे- बैठे घबड़ाने लगता, तो इन फाइलों को उलट-पुलटकर देखने लगती। एक दिन उसने एक पुराने पत्र में शतरंज का एक नक्शा देखा, जिसे हल कर देने के लिए किसी सज्जन ने पुरस्कार भी रक्खा था। उसे खयाल आया कि जिस ताक पर रमानाथ की बिसात और मुहरे रक्खे हुए हैं, उस पर एक किताब में कई नक्शे भी दिये हुए हैं। वह तुरन्त दौड़ी हुई ऊपर गयी और वह कापी उठा लायी। यह नक्शा उस कापी में मौजूद था, और नक्शा ही न था, उसका हल भी दिया हुआ था। जालपा के मन में सहसा यह विचार चमक पड़ा, इस नक्शे को किसी पत्र में छपा दूँ तो कैसा हो ! शायद उनकी निगाह पड़ जाये। यह नक्शा इतना सरल तो नहीं है कि आसानी से हल हो जाये। इस नगर में जब कोई उनका सानी नहीं है, तो ऐसे लोगों की संख्या बहुत नहीं हो सकती, जो यह नक्शा हल कर सकें। कुछ भी हो, जब उन्होंने यह नक्शा हल किया है, तो इसे देखते ही फिर हल कर लेंगे। जो लोग पहली बार देखेंगे, उन्हें दो एक दिन सोचने में लग जायँगे। मैं लिख दूँगी कि जो सबसे पहिले हल कर ले, उसी को पुरस्कार दिया जाय। जुआ तो है ही। उन्हें रुपये न भी मिलें तो भी इतना तो सम्भव है ही कि हल करने वालों में उनका नाम भी हो। कुछ पता तो लग जायेगा। कुछ भी न हो, तो रुपये ही तो जायँगे। दस रुपये का पुरस्कार रख दूँ। पुरस्कार कम होगा, तो कोई बड़ा खिलाड़ी उधर ध्यान न देगा। यह बात भी रमा के हित की होगी।
|