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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


देवीदीन चिलम पीने लगा और जालपा सड़क पर आकर टहलने लगी। रमा की यह निन्दा सुनकर उसका हृदय टुकड़े-टुकड़े हुआ जाता था। उसे रमा पर क्रोध न आया, ग्लानि न आयी, उसे हाथों का सहारा देकर इस दलदल से निकालने के लिए उसका मन विकल हो उठा। रमा चाहे उसे दुत्कार ही क्यों न दे, उसे ठुकरा ही क्यों न दे, वह उसे अपयश के अँधेरे खड्ड में न गिरने देगी।

जब दोनों यहाँ से चले तो जालपा ने पूछा–इस आदमी से कह दिया न कि वह जब आ जायें तो हमें खबर दे दे?

‘हाँ कह दिया।’

[३७]

एक महीना गुजर गया। गोपीनाथ पहले तो कई दिन कलकत्ते की सैर करता रहा; मगर चार-पाँच दिन में ही यहाँ से उसका जी ऐसा उचाट हुआ कि घर की रट लगानी शुरू की आखिर जालपा ने उसे लौटा देना ही अच्छा समझा। यहाँ तो वह छिप-छिपकर रोया करता था

जालपा कई बार रमा के बँगले तक हो आयी। वह जानती थी कि अभी रमा नहीं आये हैं। फिर भी वहाँ एक चक्कर लगा आने में उसको एक विचित्र सन्तोष होता था।

जालपा कुछ पढ़ते-पढ़ते या लेटे-लेटे थक जाती, तो एक क्षण के लिए खिड़की के सामने आ खड़ी होती थी। एक दिन शाम को वह खिड़की के सामने आयी, तो सड़क पर मोटरों की एक कतार नज़र आयी। कुतुहल हुआ, इतनी मोटरें कहाँ जा रही हैं। गौर से देखने लगी। छः मोटरें थी। उनमें पुलिस के अफसर बैठे हुए थे। एक में सब सिपाही थे। आखिरी मोटर पर जब उसकी निगाह पड़ी, तो मानो उसके शरीर में बिजली की लहर दौड़ गयी। वह ऐसी तन्मय हुई कि खिड़की से जीने तक दौड़ी आयी, मानो मोटर को रोक लेना चाहती हो; पर इसी एक पल में उसे मालूम हो गया कि मेरे नीचे उतरते-उतरते मोटरें निकल जायेंगी। वह फिर खिड़की के सामने आयी। रमा अब बिलकुल सामने आ गया था। उसकी आँखें खिड़की की ओर लगी हुई  थीं। जालपा ने इशारे से कुछ कहना चाहा; पर संकोच ने रोक दिया। ऐसा मालूम हुआ कि रमा की मोटर कुछ धीमी हो गयी है। देवीदीन की आवाज़ भी सुनायी दी; मगर मोटर रुकी नहीं। एक ही क्षण में वह आगे बढ़ गयी; पर रमा अब भी रह-रहकर खिड़की की ओर ताकता जाता था।

जालपा ने जीने पर आकर कहां–दादा !

देवीदीन ने सामने आकर कहा–भैया आ गये ! वह क्या मोटर जा रही है !

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