उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
438 पाठक हैं |
ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
देवीदीन ने उसे आदर की दृष्टि से देखकर कहा–तुम सब कर लोगी बहू, अब मुझे विश्वास हो गया। जब तुमने कलेजा इतना मजबूत कर लिया है, तो तुम सब कुछ कर सकती हो।
‘तो यहाँ से नौ बजे चलें?’
‘हाँ, मैं तैयार हूँ।’
[३८]
वह रमानाथ, जो पुलिस के भय से बाहर न निकलता था, जो देवीदीन के घर में चोरों की तरह पड़ा जिन्दगी के दिन पूरे कर रहा था, आज दो महीनों से राजसी भोग-विलास में डूबा हुआ है। रहने को सुन्दर सजा हुआ बँगला है, सेवा-टहल से लिए चौकीदारों का एक दल, सवारी के लिए मोटर। भोजन पकाने के लिए एक कश्मीरी बाबर्ची है। बड़े-बड़े अफसर उसका मुँह ताका करते हैं। उसके मुँह से बात निकली नहीं की पूरी हुई। इतने ही दिनों में उसके मिजाज में इतनी नफासत आ गयी है, मानो वह खानदानी रईस हो। विलास ने उसकी विवेक-बुद्धि को सम्मोहित-सा कर दिया है। उसे कभी इसका खयाल भी नहीं आता कि मैं क्या कर रहा हूँ और मेरे हाथों कितने बेगुनाहों का खून हो रहा है। उसे एकान्त विचार का अवसर भी नहीं दिया जाता। रात को वह अधिकारियों के साथ सिनेमा या थियेटर देखने जाता है, शाम को मोटरों की सैर होती है। मनोरंजन के नित्य नये सामान होते रहते हैं। जिस दिन अभियुक्तों को मजिस्ट्रेट ने सेशन सुपुर्द किया, सबसे ज्यादा खुशी उसी को हुई। उसे अपना सौभाग्य-सूर्य उदय होता हुआ मालूम होता था।
पुलिस को मालूम था कि सेशन जज के इजलास में यह बहार न होगी। संयोग से जज हिन्दुस्तानी थे और निष्पक्षता के लिए बदनाम। पुलिस हो या चोर, उनकी निगाह में बराबर था। वह किसी के साथ रू-रिआयत न करते थे। इसलिए पुलिस ने रमा को एक बार उन स्थानों की सैर कराना जरूरी समझा, जहाँ वारदातें हुई थीं। एक जमींदार की सजी-सजायी कोठी में डेरा पड़ा। दिन भर लोग शिकार खेलते, रात को ग्रामोफोन सुनते, ताश खेलते और बजरों पर नदियों की सैर करते। ऐसा जान पड़ता था कि कोई राजकुमार शिकार खेलने निकला है।
इस भोग-विलास में रमा को अगर कोई अभिलाषा थी, तो यह कि जालपा भी यहाँ होती। जब तक वह पराश्रित था, दरिद्र था, उसकी विलासेन्द्रियाँ मानो मूर्छित हो रही थीं। इन शीतल झोंकों ने उन्हें फिर सचेत कर दिया। वह इस कल्पना में मग्न था कि यह मुकदमा खत्म होते ही उसे अच्छी जगह मिल जायेगी। तब वह जाकर जालपा को मना लावेगा और आनन्द से जीवन-सुख भोगेगा। हाँ, वह नये प्रकार का जीवन होगा, उसकी मर्यादा कुछ और होगी, सिद्धान्त कुछ और होंगे, उसमें कठोर संयम होगा और पक्का नियंत्रण ! अब उसके जीवन का कुछ उद्देश्य होगा, कुछ आदर्श होगा। केवल, खाना, सोना और रुपये के लिए हाय-हाय करना ही जीवन का व्यापार न होगा। इसी मुकदमे के साथ इस मार्गहीन जीवन का अन्त हो जायेगा। दुर्बल इच्छा ने उसे यह दिन दिखाया था और अब एक नये और संस्कृति जीवन का स्वरूप दिखा रही थी। शराबियों की तरह ऐसे मनुष्य भी रोज ही संकल्प करते हैं; लेकिन उन संकल्पों का अन्त क्या होता है? नये-नये प्रलोभन सामने आते रहते हैं और संकल्प की अवधि भी बढ़ती चली जाती है। नये प्रभात का उदय कभी नहीं होता।
|