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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


एक महीना देहात की सैर करने के बाद रमा पुलिस के सहयोगियों के साथ अपने बँगले पर जा रहा था। रास्ता देवीदीन के घर के सामने से था; कुछ दूर ही से उसे अपना कमरा दिखायी दिया। अनायास ही उसकी निगाह ऊपर उठ गयी। खिड़की के सामने कोई खड़ा था। इस वक्त देवीदीन वहाँ क्या कर रहा है? उसने जरा ध्यान से देखा। यह तो कोई औरत है ! मगर औरत कहाँ से आयी? क्या देवीदीन ने वह कमरा किराये पर तो नहीं उठा दिया? ऐसा तो उसने कभी नहीं किया।

मोटर जरा और समीप आयी तो उस औरत का चेहरा साफ नजर आने लगा। रमा चौंक पड़ा। यह तो जालपा है ! बेशक जालपा है ! मगर नहीं, जालपा यहाँ कैसे आयेगी? मेरा पता-ठिकाना उसे कहाँ मालूम ! कहीं बुड्ढे ने उसे खत तो नहीं लिख दिया? जालपा ही है। नायब दारोगा मोटर चला रहा था। रमा ने बड़ी मित्रता के साथ कहा–सरदार साहब, एक मिनट के लिए रुक जाइए। मैं जरा देवीदीन से एक बात कर लूँ। नायब ने मोटर जरा धीमी कर दी; लेकिन फिर कुछ सोचकर उसे आगे बढ़ा दिया।

रमा ने तेज होकर कहा–आप तो मुझे कैदी बनाये हुए हैं !

नायब ने खिसियाकर कहा–आप तो जानते हैं, डिप्टी साहब कितनी जल्द जामे से बाहर हो जाते हैं।

बँगले पर पहुँचकर रमा सोचने लगा, जालपा से कैसे मिलूँ। वहाँ जालपा ही थी, इसमें अब उसे कोई शुबहा न था। आँखों को कैसे धोखा देता। हृदय में एक ज्वाला-सी उठी हुई थी, क्या करूँ? कैसे जाऊँ? उसे कपड़े उतारने की सुधि भी न रही। पन्द्रह मिनट तक वह कमरे के द्वार पर खड़ा रहा। कोई हिकमत न सूझी। लाचार पलँग पर लेट रहा।

ज़रा ही देर में वह फिर उठा और सामने सहन में निकल आया। सड़क पर उसी वक्त बिजली की रोशनी हो गयी। फाटक पर चौकीदार खड़ा था। रमा को उस पर इस समय इतना क्रोध आया, कि गोली मार दे। अगर मुझे कोई अच्छी जगह मिल गयी, तो एक-एक से समझूँगा। तुम्हें तो डिसमिस कराके छोड़ूँगा। कैसा शैतान की तरह सिर पर सवार है। मुँह तो देखो जरा। मालूम होता है, बकरी की दुम है। वाह रे आपकी पगड़ी? कोई टोकरी ढोने वाला कुली है। अभी कुत्ता भूँक पड़े, तो आप दुम दबाकर भागेंगे; मगर यहाँ ऐसे डटे खड़े हैं, मानो किसी किले के द्वार की रक्षा कर रहे हैं।

एक चौकीदार ने आकर कहा–इसपिट्टर साहब ने बुलाया है। कुछ नये तवे मँगवाये हैं।

रमा ने झल्लाकर कहा–मुझे इस वक्त फुरसत नहीं है।

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