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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


नीचे बरामदे में दयानाथ भी चिल्ला उठे–चोर ! चोर !

जालपा घबड़ाकर उठी। दौड़ी हुई कमरे में गयी, झटके से आलमारी खोली। सन्दूकची वहाँ न थी। मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।

[८]

सवेरा होते ही दयानाथ गहने लेकर सराफ़ के पास पहुँचे और हिसाब होने लगा। सराफ़ के १५००) आते थे; मगर वह केवल १५००) के गहने लेकर सुन्तुष्ट न हुआ। बिके हुए गहनों को वह बट्टे पर ही ले सकता था। बिकी हुई चीज़ कौन वापस लेता है। जाकड़ पर दिये होते, तो दूसरी बात थी। इन चीज़ों का तो सौदा हो चुका था। उसने कुछ ऐसी व्यापारिक सिद्धान्त की बातें कीं, दयानाथ को कुछ ऐसा शिकंजे में कसा कि बेचारे को हाँ-हाँ करने के सिवा और कुछ न सूझा। दफ्तर का बाबू चतुर दूकानदार से क्या पेश पाता? १५००) में २५००) के गहने भी चले गये, ऊपर से ५०)और बाकी रहे गये। इस बात पर पिता-पुत्र में कई दिन खूब वाद-विवाद हुआ। दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराते रहे। कई दिन आपस में बोलचाल बन्द रही; मगर इस चोरी का हाल गुप्त रखा गया। पुलिस को खबर हो जाती, तो भंडा फूट जाने का भय था। जालपा से यही कहा गया कि माल तो मिलेगा नहीं, व्यर्थ का झंझट भले ही होगा। जालपा ने भी सोचा, जब माल ही न मिलेगा तो रपट व्यर्थ क्यों की जाय।

जालपा को गहनों से जितना प्रेम था, उतना कदाचित् संसार की और किसी वस्तु से न था, और उसमें आश्चर्य की कौन-सी बात थी। जब वह तीन वर्ष की अबोध बालिका थी, उस वक्त उसके लिए सोने के चूड़े बनवाये गये थे। दादी जब उसे गोद खिलाने लगती, तो गहनों की ही चर्चा करती–तेरा दूल्हा तेरे लिए बड़े सुन्दर गहने लायेगा। ठुमक-ठुमककर चलेगी।

जालपा पूँछती–चाँदी के होंगे कि सोने के, दादी जी?

दादी कहती–सोने के होंगे बेटी, चाँदी के क्यों लायेगा? चाँदी के लाये तो तुम उठाकर उसके मुँह पर पटक देना।

मानकी छेड़कर कहती–चाँदी के तो लायेगा ही। सोने के उसे कहाँ मिल जाते हैं।

जालपा रोने लगती, इस पर बूढ़ी दादी, मानकी, घर की  महरियाँ, पड़ोसिनें और दीनदयाल–सब हँसते। उन लोगों के लिए यह विनोद का अशेष भंड़ार था।

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