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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


देवीदीन ने दुविधे में पड़कर कहा–मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता बहूजी। हाकिम का वास्ता। न जाने चित्त पड़े या पट।

जालपा बोली–क्या पुलिस वालों से यह नहीं कह सकता कि तुम्हारा गवाह बनाया हुआ है?

‘कह तो सकता है।’

‘तो आज मैं उससे मिलूँ। मिल तो लेता है?’

‘चलो, दरियाफ़्त करेंगे; लेकिन मामला जोखिम है?’

‘क्या जोखिम है बताओ?’

‘भैया पर झूठी का इलजाम लगाकर सजा करा दे तो?’

‘तो कुछ नहीं। जो जैसा करे, वैसा भोगे।’

देवीदीन ने जालपा की इस निर्ममता पर चकित होकर कहा–एक दूसरा खटका है। सबसे बड़ा डर उसी का है।

जालपा ने उद्धत भाव से पूछा–वह क्या?

देवी–पुलिसवाले बड़े काफर होते हैं। किसी का अपमान कर डालना तो इनकी दिल्लगी है। जज साहब पुलिस कमिसनर को बुलाकर यह सब हाल कहेंगे जरूर। कमिसनर सोचेंगे कि यह औरत सारा खेल बिगाड़ रही है। इसी को गिरफ्तार कर लो। जज अँग्रेज होता तो निडर होकर पुलिस की तंबीह करता। हमारे भाई तो ऐसे मुकदमो में चूँ करते डरते हैं कि कहीं हमारे ऊपर न बगावत का इलजा़म लग जाय। यही बात है। जज साहब पुलिस कमिसनर से जरूर कह सुनावेंगे। फिर यह तो न होगा कि मुकदमा उठा लिया जाय। यही होगा कि कलई न खुलने पावे। कौन जानें तुम्हीं को गिरफ्तार कर लें। कभी-कभी जब गवाह बदलने लगता है, या कलई खोलने पर उतारू हो जाता है, तो पुलिस वाले उसके घर वालों को दबाते हैं। इनकी माया अपरम्पार है।

जालपा सहम उठी। अपनी गिरफ्तारी का उसे भय न था; लेकिन कहीं पुलिसवाले रमा पर अत्याचार न करें। इस भय ने उसे कातर कर दिया। उसे इस समय ऐसी थकान मालूम हुई, मानो सैकड़ों कोस की मंजिल मारकर आयी हो। उसका सारा सत्साहस बर्फ़ के समान पिघल गया।

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