लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


‘किसकी सजा हुई?’

‘कोई नहीं छूटा। एक को फाँसी की सजा मिली। पाँच को दस-दस साल और आठ को पाँच-पाँच साल। उसी दिनेश को फाँसी हुई।’

यह कहकर उसने समाचार पत्र रख दिया और एक लम्बी साँस लेकर बोली–इन बेचारों के बाल-बच्चों का न जाने क्या हाल होगा !

देवीदीन ने तत्परता से कहा–तुमने जिस दिन मुझसे कहा था, उसी दिन से मैं इन सबों का पता लगा रहा हूँ। आठ आदमियों का अभी तक ब्याह नहीं हुआ और उनके घर वाले मजे में हैं। किसी बात की तकलीफ नहीं है। पाँच आदमियों का विवाह तो हो गया है, पर घर के खुश हैं। किसी के घर रोजगार होता है, कोई जमींदार है, किसी के बाप-चचा नौकर हैं। मैंने कई आदमियों से पूछा। यहाँ कुछ चन्दा भी किया गया है। अगर उनके घर वाले लेना चाहें तो दिया जायेगा। खाली दिनेश तबाह है। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, बुढ़िया माँ और औरत। यहाँ किसी स्कूल में मास्टर था। एक मकान किराये पर लेकर रहता था। उसकी खराबी है।
जालपा ने पूछा–उसके घर का कुछ पता लगा सकते हो?

‘हाँ, उसका पता कौन मुस्किल है।’
 
जालपा ने याचना-भाव से कहा–तो कब चलोगे? मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। अभी तो वक्त है। चलो, जरा देखें।

देवीदीन ने आपत्ति करके कहा–पहले मैं देख तो आऊँ। इस तरह उटक्करलैस मेरे साथ कहाँ-कहाँ दौड़ती फिरोगी?

जालपा ने मन को दबाकर लाचारी से सिर झुका लिया और कुछ न बोली।

देवीदीन चला गया। जालपा फिर समाचार पत्र देखने लगी; पर उसका ध्यान दिनेश की ओर लगा हुआ था। बेचारा फाँसी पर जायेगा। जिस वक्त उसने फाँसी का हुक्म सुना होगा, उसकी क्या दशा हुई होगी।

उसकी बूढ़ी माँ और स्त्री यह खबर सुनकर छाती पीटने लगी होंगी। बेचारा स्कूल मास्टर ही तो था, मुस्किल से रोटियाँ चलती होंगी। और क्या सहारा होगा? उनकी विपत्ति की कल्पना करके उसे रमा के प्रति ऐसी उत्तेजनापूर्ण घृणा हुई कि वह उदासीन न रह सकी। उसके मन में ऐसा उद्वेग उठा कि इस वक्त वह आ जायँ तो ऐसा धिक्कारूँ कि वह भी याद करें। तुम मनुष्य हो ! कभी नहीं। तुम मनुष्य के रूप में राक्षस हो, राक्षस ! तुम इतने नीच हो कि उसको प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं। तुम इतने नीच हो कि आज कमीने-से-कमीना आदमी भी तुम्हारे ऊपर थूक रहा है। तुम्हें किसी ने पहले ही क्यों न मार डाला। इन आदमियों की जान तो जाती ही; पर तुम्हारे मुँह पर तो कालिख न लगती। तुम्हारा इतना पतन हुआ कैसे ! जिसका पिता इतना सच्चा, इतना ईमानदार हो, वह इतना लोभी, इतना कायर !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book