उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमा–इसका यह मतलब है कि मुझे इस डी० ओ० की ज़रूरत नहीं है और न मैं नौकरी चाहता हूँ। मैं आज ही यहाँ से चला जाऊँगा।
डिप्टी–जब तक हाई कोर्ट का फैसला न हो जाय, तब तक आप कहीं नहीं जा सकता।
रमा–क्यों?
डिप्टी–कमिश्नर साहब का हुक्म है।
रमा–मैं किसी का गुलाम नहीं हूँ।
इन्स्पेक्टर–बाबू रमानाथ, आप क्यों बना बनाया खेल बिगाड़ रहे हैं? जो कुछ होना था वह हो गया। दस-पाँच दिन में हाई कोर्ट के फैसले की तसदीक हो जायेगी। आपकी बेहतरी इसी में है कि जो सिला मिल रहा है, उसे खुशी से लीजिए और आराम से जिन्दगी के दिन बसर कीजिए। खुदा ने चाहा, तो एक दिन आप भी किसी ऊँचे ओहदे पर पहुँच जायेंगे। इससे क्या फायदा कि अफसरों को नाराज कीजिए और कैद की मुसीबतें झेलिए। हलफ से कहता हूँ, अफसरों की ज़रा सी निगाह बदल जाय, तो आपका कहीं पता न लगे। हलफ़ से कहता हूँ, एक इशारे में आपको दस साल की सजा हो जाय। आप हैं किस खयाल में। हम आपके साथ शरारत नहीं करना चाहते। हाँ, अगर आप हमें सख्ती करने पर मजबूर करेंगे, तो हमें सख्ती करनी पड़ेगी। जेल को आसान न समझिएगा। खुदा दोजख में ले जाये; पर जेल की सजा न दे। मार-धाड़, गाली-गुफ्ता, वह तो वहाँ की मामूली सजा है। चक्की में जोत दिया तो मौत ही आ गयी। हलफ से कहता हूँ, दोज़ख़ से बदतर है जेल !
दारोग़ा–यह बेचारे अपनी बेगम साहब से माजूर हैं। वह शायद इनके जान की गाहक हो रही है। उनसे इनकी कोर दबती है।
इन्पेी क्टर–क्या हुआ, कल तो वह हार दिया था न?
फिर भी राजी नहीं हुई?
रमा ने कोट की जेब से हार निकालकर मेज पर रख दिया और बोला–यह हार यह रक्खा हुआ है।
इन्सपेक्टर–अच्छा, इसे उन्होंने नहीं कबूल किया।
डिप्टी–कोई प्राउड लेडी है।
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