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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


अब रमानाथ के जीवन में एक नया परिवर्तन होता है, ऐसा परिवर्तन जो एक विलास-प्रिय, पद-लोलुप युवक को धर्मनिष्ठ और कर्तव्यशील बना देता है। उसकी पत्नी जालपा, जिसे देवी कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी। उसकी तलाश में प्रयाग से यहाँ आती है और यहाँ जब उसे मालूम होता है कि रमा एक मुक़दमें में पुलिस का मुखबिर हो गया है, तो वह उससे छिपकर मिलने आती है। रमा अपने बँगले में आराम से पड़ा हुआ है। फाटक पर सन्तरी पहरा दे रहा है। जालपा को पति से मिलने की सफलता नहीं होती। तब वह एक पत्र लिखकर उसके सामने फेंक देती है और देवीदीन के घर चली जाती है। रमा यह पत्र पढ़ता है और उसकी आँखों के सामने से परदा हट जाता है। वह छिपकर जालपा के पास आता है। जालपा उसे सारा वृत्तान्त कह सुनाती है और उससे अपना बयान वापस लेने पर ज़ोर देती है। रमा पहले शंकाएँ करता है; पर बाद को राजी हो जाता है और अपने बँगले पर लौट जाता है। वहाँ वह पुलिस अफसरों से वह साफ कह देता है, कि मैं अपना बयान बदल दूँगा। अधिकारी उसे तरह-तरह के प्रलोभन देते हैं; पर जब इसका रमा पर कोई असर नहीं होता और उन्हें मालूम हो गया है कि उस पर ग़बन का कोई मुक़दमा नहीं है, तो वे उसे जालपा को गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं। रमा की हिम्मत टूट जाती है। वह जानता है, पुलिस जो चाहे कर सकती है, इसलिए वह अपना इरादा तबदील कर देता है और वह जज के इज़लास में अपने बयान का समर्थन कर देता है। अदालत मातहत में रमा से सफाई ने कोई जिरह न की थी। यहाँ उससे जिरहें की गयीं; लेकिन इस मुकदमें से कोई सरोकार न रखने पर भी उसने जिरहों के ऐसे जवाब दिये कि जज को भी कोई शक न हो सका और मुल्जिमों को सजा़ हो गयी। रमानाथ की और भी खातिरदारियाँ होने लगीं। उसे एक सिफ़ारिश खत दिया गया और शायद उसकी यू. पी. गवर्नमेंट से सिफारिश भी की गयी।

फिर जालपा देवी ने फाँसी की सज़ा पाने वाले मुल्जिम दिनेश के बाल-बच्चों का पालन-पोषण करने का निश्चय किया। इधर-उधर से चन्दे माँगकर वह उनके लिए जिन्दगी की ज़रूरतें पूरी करती थीं। उसके घर का काम-काज अपने हाथों करती थीं। उसके बच्चों को खिलाने ले जाती थीं।

एक दिन रमानाथ मोटर की सैर करता हुआ जालपा को सिर पर एक पानी का मटका रक्खे देख लेता है। उसकी आत्म-मर्यादा जाग उठती है। ज़ोहरा को पुलिस-कर्मचारियों ने रमानाथ के मनोरंजन के लिए नियुक्त कर दिया है। ज़ोहरा युवक की मानसिक वेदना देखकर द्रवित हो जाती है और वह जालपा का पूरा समाचार लाने के इरादे से चली जाती है। दिनेश के घर उसकी जालपा से भेंट होती है। जालपा का त्याग, सेवा और साधना देखकर इस वेश्या का हृदय इतना प्रभावित हो जाता है कि वह अपने जीवन पर लज्जित हो जाती है और दोनों में बहनापा हो जाता है। वह एक सप्ताह के बाद जाकर रमा से सारा वृत्तान्त कह सुनाती है। रमा उसी वक्त वहाँ से चल पड़ता है और जालपा से दो-चार बातें करके जज के बँगले पर चला जाता है। उसके बाद जो कुछ हुआ, वह सामने है।

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