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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


पर ऐसा मालूम होता है कि इस बीच में उसे स्वभाग्य-निर्माण का इससे भी अच्छा अवसर मिल गया। बहुत सम्भव है, सरकार की विरोधिनी संस्थाओं नें उसे प्रलोभन दिये हों और उन प्रलोभनों ने उसे स्वार्थ-सिद्ध का नया रास्ता सुझा दिया हो, जहाँ धन के साथ यश भी था, वाहवाही भी थी, देशभक्ति का गौरव भी था। वह अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ कर सकता है। वह स्वार्थ के लिए किसी के गले पर छूरी भी चला सकता है और साधुवेश भी धारण कर सकता है। यही उसके जीवन का लक्ष्य है। हम खुश हैं कि उसकी सद्बुद्धि ने अंत में उस पर विजय पायी, चाहे उनका हेतु कुछ भी क्यों न हो। निरपराधियों को दण्ड देना पुलिस के लिए उतना ही आपत्तिजनक है, जितना अपराधियों को छोड़ देना। वह अपनी कारगुजारी दिखाने के लिए ही ऐसे मुकदमें नहीं चलाती। न गवर्नमेंट इतनी न्याय-शून्य है कि वह पुलिस के बहकावे में आकर सारहीन मुक़दमे चलाती फिरे; लेकिन इस युवक की चकमेबाजियों से पुलिस की जो बदनामी हुई और सरकार के हज़ारो रुपये खर्च हो गये, इसका जिम्मेवार कौन है? ऐसे आदमी को आदर्श दण्ड मिलना चाहिए, ताकि फिर किसी को ऐसी चकमेबाजी का साहस न हो। ऐसी मिथ्या का संसार रचने वाले प्राणी के लिए मुक्त रहकर समाज को ठगने का मार्ग बन्द कर देना चाहिए। उसके लिए इस समय सबसे उपयुक्त स्थान वह है, जहाँ उसे कुछ दिन आत्मचिन्तन का अवसर मिले। शायद वहाँ के एकान्तवास में उसको आन्तरिक जागृति प्राप्त हो जाय। आपको केवल यह विचार करना है कि उसने पुलिस को धोखा दिया या नहीं। इस विषय में अब कोई सन्देह नहीं रह जाता कि उसने धोखा दिया। अगर धमकियाँ दी गयी थीं, तो वह पहली अदालत के बाद जज की अदालत अपना बयान वापस ले सकता था; पर उस वक्त भी उसने ऐसा नहीं किया। इससे यह स्पष्ट है कि धमकियों का आक्षेप मिथ्या है। उसने जो कुछ किया, स्वेच्छा से किया। ऐसे आदमी को यदि दण्ड न दिया गया, तो उसे अपनी कुटिल नीति से काम लेने का फिर साहस होगा और उसकी हिंसक मनोवृत्तियाँ और भी बलवान हो जायेंगी।

फिर सफ़ाई के वकील ने जवाब दिया–यह मुक़दमा अँग्रेजी इतिहास में ही नहीं, शायद सर्वदेशीय न्याय के इतिहास में एक अद्भुत घटना है। रमानाथ एक साधारण युवक है। उसकी शिक्षा भी बहुत मामूली हुई है। वह ऊँचे विचारों का आदमी नहीं है। वह इलाहाबाद के म्युनिसिपल ऑफिस में नौकर है। वहाँ उसका काम चुंगी के रुपये वसूल करना है। वह व्यापारियों के प्रथानुसार रिश्वत लेता है और अपनी आमदनी की परवाह न करता हुआ अनाप-शनाप खर्च करता है। आखिर एक दिन मीज़ान में गलती हो जाने से उसे शक होता है कि उससे कुछ रुपये उठ गये। वह इतना घबड़ा जाता है कि किसी से कुछ नहीं कहता, बस घर से भाग खड़ा होता है और उसके हिसाब की जाँच होती है। तब मालूम होता है कि उसने कुछ गब़न नहीं किया, सिर्फ हिसाब की भूल थी।

फिर रमानाथ के पुलिस के पंजे में फँसने, फरजी मुख़बिर बनने और शहादत देने का जिक्र करके उसने कहा–

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