उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
शाम हो गयी है, गायें-भैसें हार से लौटीं। जग्गो ने उन्हें खूटे में बाँधा और थोड़ा-थोड़ा भूसा लाकर उनके सामने डाल दिया। इतने में देवी और गोपी भी बैलगाड़ी पर डाँठें लादे हुए आ पहुँचे। दयानाथ ने बरगद के नीचे जमीन साफ कर रक्खी है। वहीं डाँठें उतारी गयीं। यही इस छोटी बस्ती का खलिहान है। दयानाथ नौकरी से बरखास्त हो गये थे और अब देवी के असिस्टेंट हैं। उनकों समाचार पत्रों से अब भी वही प्रेम है, रोज कई पत्र आते हैं, और शाम को फुरसत पाने के बाद मुंशीजी पत्रों को पढ़कर सुनाते और समझाते हैं। श्रोताओं में बहुधा आसपास के गाँवों के दस-पाँच आदमी भी आ जाते हैं और रोज एक छोटी-मोटी सभा हो जाती है।
रमा को तो इस जीवन से इतना अनुराग हो गया है कि अब शायद उसे थानेदारी ही नहीं, चुंगी इन्स्पेक्टरी भी मिल जाय, तो शहर का नाम न ले। प्रातः काल उठकर गंगा-स्नान करता है, फिर कुछ कसरत करके दूध पीता है और दिन निकलते-निकलते अपनी दवाओं का सन्दूक लेकर आ बैठता है। उसने वैद्यक की कई किताबें पढ़ ली हैं और छोटी-मोटी बीमारियों की दवा दे देता है। दस-पाँच मरीज रोज आ जाते हैं और उसकी कीर्ति दिन-दिन बढ़ती जाती है। इस काम से छुट्टी पाते ही वह अपने बगीचे में चला जाता है। वहाँ कुछ साग भाजी भी लगी हुई है, कुछ फल-फूलों के वृक्ष हैं और कुछ जड़ी-बूटियाँ हैं। अभी तो बाग से केवल तरकारी मिलती है; पर आशा है कि तीन-चार साल में नीबू, अमरूद, बेर, नारंगी, आम, केले, आँवले, कटहल, बेल आदि फलों की अच्छी आमदनी होने लगेगी।
देवी ने बैलों को गाड़ी से खोलकर खूँटे से बाँध दिया और दयानाथ से बोला–अभी भैया नहीं लौटे?
दयानाथ ने डाँठों को समेटते हुए कहा–अभी तो नहीं लौटे। मुझे तो अब इनके अच्छे होने की आशा नहीं है। जमाने का फेर है। कितने सुख से रहती थीं, गाड़ी थी, मोटर थी, बँगला था, दर्जनों नौकर थे। अब यह हाल है। सामान सब मौजूद है, वकील साहब ने अच्छी सम्पत्ति छोड़ी थी; मगर भाई भतीजों ने हड़प ली।
देवी–भैया कहते थे, अदालत करतीं तो सब मिल जाता; पर कहती हैं, मैं अदालत में झूठ न बोलूँगी। औरत बड़े ऊँचे विचार की है।
सहसा जागेश्वरी एक छोटे से शिशु को गोद में लिये हुए एक झोपड़े से निकली और बच्चे को दयानाथ की गोद में देती हुई देवीदीन से बोलीं–भैया, ज़रा चलकर रतन को देखो, जाने कैसी हुई जाती है। ज़ोहरा और बहू, दोनों रो रही हैं ! बच्चा न जाने कहाँ रह गये !
देवीदीन ने दयानाथ से कहा–चलो लाला, देखें।
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