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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


जालपा आँखों में आँसू भरकर बोली–तो मैं तुमसे गहनों के लिए रोती तो नहीं हूँ। भाग्य में जो लिखा था, वह हुआ। आगे वही होगा, जो लिखा है। जो औरतें गहने नहीं पहनतीं, क्या उनके दिन नहीं कटते? इस वाक्य ने रमा का संशय तो मिटा दिया; पर इसमें जो तीव्र वेदना छिपी हुई थी, वह उससे छिपी न रही। इन तीनों महीनों में बहुत प्रयत्न करने पर भी सौ रुपये से अधिक संग्रह न कर सका था। बाबू लोगों के आदर-सत्कार में उसे बहुत कुछ गलाना पड़ता था; मगर बिना खिलाये-पिलाये काम भी तो न चल सकता था। सभी उसके दुश्मन हो जाते और उसे उखाड़ने की घातें सोचने लगते। मुफ्त का धन अकेले नहीं हज़म होता, यह वह अच्छी तरह जानता था। वह स्वयं एक पैसा भी व्यर्थ खर्च न करता। चतुर-व्यापारी की भाँति वह जो कुछ खर्च करता था, वह केवल कमाने के लिए। आश्वासन देते हुए बोला–ईश्वर ने चाहा तो दो-एक महीने में कोई चीज़ बन जायेगी।

जालपा–मैं उन स्त्रियों में नहीं हूँ, जो गहनों पर जान देती हैं। हाँ, इस तरह किसी के घर आते-जाते शर्म आती ही है।

रमा का चित्त ग्लानि से व्याकुल हो उठा। जालपा के एक-एक शब्द से निराशा टपक रही थी। इस अपार वेदना का कारण कौन था? क्या यह भी उसी का दोष न था कि इन तीन महीनों में उसने कभी गहनों की चर्चा नहीं की? जालपा यदि संकोच के कारण इसकी चर्चा न करती तो रमा को उसके आँसू पोंछने के लिए, उसका मन रखने के लिए, क्या मौन के सिवा दूसरा उपाय न था? मुहल्ले में रोज ही एक-न-एक उत्सव होता रहता है, रोज ही पास-पड़ोस की औरतें मिलने आती हैं, बुलावे भी रोज आते ही रहते हैं, बेचारी जालपा कब तक इस प्रकार आत्मा का दमन करती रहेगी, अन्दर-ही-अन्दर कुढ़ती रहेगी, हँसने-बोलने को किसका जी नहीं करता, कौन कैदियों की तरह अकेला पड़ा रहना पसन्द करता है? मेरे ही कारण तो इसे यह भीषण यातना सहनी पड़ रही है।

उसने सोचा, क्या किसी सराफ से गहने उधार नहीं लिये जा सकते? कई बड़े सराफों से उसका परिचय था; लेकिन उनसे वह यह बात कैसे कहता? कहीं वे इन्कार कर दें तो? या सम्भव है, बहाना करके टाल दें। उसने निश्चय किया कि अभी उधार लेना ठीक न होगा। कहीं वादे पर रुपये न दे सका, तो व्यर्थ में थुक्का-फजीहती होगी। लज्जित होना पड़ेगा। अभी कुछ दिन और धैर्य से काम लेना चाहिए।

सहसा उसके मन में आया, इस विषय में जालपा की राय लूँ। देखूँ वह क्या कहती है। अगर उसकी इच्छा हो तो किसी सराफ से वादे पर चीजें ले ली जायँ, मैं इस अपमान और संकोच को सह लूँगा। जालपा को संतुष्ट करने के लिए कि उसके गहनों की उसे कितनी फिक्र है। बोला–तुमसे एक सलाह करना चाहता हूँ। पूछूँ या न पूछूँ?

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