उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमानाथ–जी हाँ तीन रुपये की चपत पड़ गयी।
रमेश–कोई हर्ज नहीं, यह रुपये वसूल हो जायेंगे। बड़े आदमियों से राह-रस्म हो जाये तो बुरा नहीं है, बड़े-बड़े काम निकलते हैं। एक दिन उन लोगों को भी तो बुलाओ।
रमानाथ–अब के इतवार को चाय की दावत दे आया हूँ।
रमेश–कहो तो मैं भी आ जाऊँ। जानते हो न वकील साहब के एक भाई इंजीनियर हैं। मेरे एक साले बहुत दिनों से बेकार बैठे हैं। अगर वकील साहब उसकी सिफारिश कर दें, तो गरीब को जगह मिल जाये। तुम ज़रा मेरा इन्ट्रोडक्शन करा देना, बाकी और सब मैं कर लूँगा। पार्टी का इन्तजाम ईश्वर ने चाहा, तो ऐसा होगा कि मेम साहब खुश हो जायेंगी। चाय के सैट, शीशे के रंगीन गुलदान और फानूस मैं ला दूँगा। कुर्सियाँ मेजें फर्श सब मेरे ऊपर छोड़ दे। न कुली की जरूरत न मजूर की। उन्हीं मूसलचंद को रगेदूँगा।
रमानाथ–तब तो बड़ा मज़ा रहेगा। मैं तो बड़ी चिन्ता में पड़ा हुआ था।
रमेश–चिन्ता की कोई बात नहीं, उसी लौंडी को जोत दूँगा। कहूँगा, जगह चाहते हो तो कारगुज़ारी दिखाओ। फिर देखना, कैसी दौड़-धूप करता है।
रमानाथ–अभी दो-तीन महीने हुए आप अपने साले को कहीं नौकर रखा चुके हैं न?
रमेश–अजी, अभी छः और बाकी हैं। पूरे सात जीव हैं। ज़रा बैठ जाओ, जरूरी चीजों की सूची बना ली जाये। आज ही से दौड़-धूप होगी, तब सब चीजें जुटा सकूँगा। और कितने मेहमान होंगे?
रमानाथ–मेम साहब होंगी, और शायद वकील साहब भी आयें।
रमेश–यह बहुत अच्छा किया। बहुत से आदमी हो जाते हैं, तो भभ्भड़ हो जाता। हमें तो मेम साहब से काम है। ठलुओं की खुशामद करने से क्या फायदा?
दोनों आदमियों ने सूची तैयार की। रमेश बाबू ने दूसरे ही दिन सामान जमा करना शुरू किया। उनकी पहुँच अच्छे-अच्छे घरों में थी सजावट की अच्छी-अच्छी चीजें बटोर लाये, सारा घर जगमगा उठा। दयानाथ भी इन तैयारियों में शरीक थे। चीजों को करीने से सजाना उनका काम था। कौन गमला कहाँ रक्खा जाये, कौन तस्वीर कहाँ लटकायी जाये। कौन सा गलीचा कहाँ बिछाया जाये, इन प्रश्नों पर तीनों मनुष्यों में घंटों वाद-विवाद होता था। दफ्तर जाने के पहले और दफ्तर से आने के बाद तीनों इन्हीं कामों में जुट जाते थे। एक दिन इस बात पर बहस छिड़ गयी कि कमरे में आईना कहाँ रक्खा जाय। दयानाथ कहते थे, इस कमरे में आईने की ज़रूरत नहीं। आईना पीछे वाले कमरे में रखना चाहिए। रमेश इसका विरोध कर रहे थे। रमा दुविधे में चुपचाप खड़ा था। न इनकी-सी कह सकता था न उनकी-सी।
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