उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
8 पाठकों को प्रिय 438 पाठक हैं |
ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
उसने सोचा–इस समय झल्लाने और बिगड़ने से समस्या हल न होगी। शान्त चित्त होकर विचार करने की आवश्यकता थी। रतन से रुपये वापस लेना अनिवार्य था। जिस समय वह यहाँ आयी है, अगर मैं खुद मौजूद होता तो कितनी खूबसूरती से सारी मुश्किल आसान हो जाती ! मुझको क्या शामत सवार थी कि घूमने निकला एक दिन न घूमने जाता तो कौन मरा जाता था। कोई गुप्त शक्ति मेरा अनिष्ट करने पर उतारू हो गयी है। दस मिनट की अनुपस्थिति ने सारा खेल बिगाड़ दिया। वह कह रही थी कि रुपये रख लीजिए। जालपा ने ज़रा समझ से काम लिया होता तो यह नौबत काहे को आती। लेकिन फिर मैं बीती हुई बातें सोचने लगा। समस्या है, रतन से रुपये वापस कैसे लिये जायँ। क्यों न चलकर कहूँ, मैंने सुना है रुपये लौटाने से आप नाराज़ हो गयी हैं। असल में मैं आपके लिए रुपये न लाया था। सराफ से इसलिए माँग लाया था, जिसमें वह चीज बनाकर दे दे। सम्भव है, वह खुद ही लज्जित होकर क्षमा माँगे और रुपये दे दे। बस इस वक्त वहाँ जाना चाहिए।
यह निश्चय करके उसने घड़ी पर नज़र डाली। साढे़ आठ बजे थे। अन्धकार छाया हुआ था। ऐसे समय रतन घर से बाहर नहीं जा सकती। रमा ने साइकिल उठायी और रतन से मिलने चला।
रतन के बँगले पर आज बड़ी बहार थी। यहाँ नित्य ही कोई-न-कोई उत्सव, दावत, पार्टी होती रहती थी। रतन का एकान्त नीरस जीवन इन विषयों की ओर उसी भाँति लपकता था, जैसे प्यासा पानी की ओर लपकता है। इस वक्त वहाँ बच्चों का जमघट था। एक आम के वृक्ष में झूला पड़ा हुआ था। बिजली की बत्तियाँ जल रही थीं, बच्चे झूला झूल रहे थे और रतन खड़ी झूला रही थी। हू-हक मचा हुआ था। वकील साहब इस मौसम में भी ऊनी ओवरकोट पहने बरामदे में बैठे सिगार पी रहे थे। रमा की इच्छा हुई, कि झूले के पास जाकर रतन से बातें करे; पर वकील साहब को खड़े देखकर वह संकोच के मारे उधर न जा सका। वकील साहब ने उसे देखते ही हाथ बढ़ा दिया और बोले–आओ रमा बाबू, कहो तुम्हारे म्युनिसिपल बोर्ड की क्या खबरें हैं?
रमा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा–कोई नयी बात तो नहीं हुई।
वकील–आपके बोर्ड में लड़कियों की अनिवार्य शिक्षा का प्रस्ताव कब पास होगा? और कई बोर्डों ने तो पास कर दिया। जब तक स्त्रियों की शिक्षा का काफी प्रसार न होगा, हमारा कभी उद्धार न होगा। आप तो योरोप न गये होंगे? आह ! क्या आजादी है, क्या दौलत है, क्या जीवन है, क्या उत्साह है ! बस मालूम होता है, यही स्वर्ग है। और भी सचमुच देवियाँ हैं। इतनी हँसमुख, इतनी स्वच्छन्द, यह सब स्त्री शिक्षा का प्रसाद है !
रमा ने समाचार-पत्रों में इन देशों का जो थोड़ा बहुत हाल पढ़ा था, उसके आधार पर बोला–वहाँ स्त्रियों का आचरण तो बहुत अच्छा नहीं है।
|