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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


वकील–नान्सेंस ! अपने-अपने देश की प्रथा है। आप किसी एक युवती को युवक के साथ एकान्त में विचरते देखकर दाँतों उँगली दबाते हैं। आपका अन्तःकरण इतना मलिन हो गया है कि स्त्री-पुरुष को एक जगह देखकर आप सन्देह किये बिना रह ही नहीं सकते;  पर  जहाँ लड़के और लड़कियाँ एक साथ शिक्षा पाते हैं, वहाँ यदि जाति-भेद बहुत महत्त्व की वस्तु नहीं रह जाती-आपस में स्नेह और सहानुभूति की इतनी बातें पैदा हो जाती हैं कि कामुकता का अंश बहुत थोड़ा रह जाता है। यह समझ लीजिए कि जिस देश में स्त्रियों की जितनी अधिक स्वाधीनता है, वह देश उतना ही सभ्य है। स्त्रियों को कैद में, परदे में या पुरुषों से कोसों दूर रखने का तात्पर्य यही निकलता है कि आपके यहाँ जनता इतनी आचार-भ्रष्ट है कि स्त्रियों का अपमान करने में जरा भी संकोच नहीं करती। युवकों के लिए राजनीति, धर्म, ललित-कला, साहित्य, दर्शन, इतिहास, विज्ञान और हजारों ही ऐसे विषय हैं, जिनके आधार पर वे युवतियों से गहरी दोस्ती पैदा कर सकते हैं। कामलिप्सा उन देशों के लिए आकर्षण का प्रधान विषय है, जहाँ लोगों की मनोवृत्तियाँ संकुचित रहती हैं। मैं साल भर योरोप और अमरीका में रह चुका हूँ। कितनी ही सुन्दरियों के साथ मेरी दोस्ती थी। उनके साथ खेला हूँ, नाचा भी हूँ, पर कभी मुँह से ऐसा शब्द न निकलता था जिसे सुनकर किसी युवती को लज्जा से सिर झुकाना पड़े और फिर अच्छे और बुरे कहाँ नहीं है?

रमा को इस समय इन बातों में कोई आनन्द न आया, वह तो इस समय दूसरी ही चिन्ता में मग्न था।

वकील साहब ने फिर कहा–जब तक हम स्त्री पुरुषों का अबाध रूप से अपना-अपना मानसिक विकास न कर देंगे, हम अवनति की ओर खिसकते चले जायेंगे। बन्धनों से समाज का पैर बाँधिए, उसके गले में कैदों की जंजीर न डालिए। विधवा-विवाह का प्रचार कीजिए, खूब जोरों से कीजिए, लेकिन यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि जब कोई अधेड़ आदमी किसी युवती से ब्याह कर लेता है तो क्यों अखबारों में इतना कुहराम मच जाता है। योरोप में अस्सी बरस के बूढ़े युवतियों से ब्याह करते हैं, सत्तर वर्ष की वृद्धाएँ युवकों से विवाह करती हैं, कोई कुछ नहीं कहता। किसी को कानों कान खबर भी नहीं होती। हम बूढ़ों को मरने से पहले ही मार डालना चाहते हैं। हालाँकि मनुष्य को कभी किसी सहगामिनी की ज़रूरत होती है तो वह बुढ़ापे में, जब उसे हरदम किसी अवलम्ब की इच्छा होती है, जब वह परमुखापेक्षी हो जाता है।

रमा का ध्यान झूले की ओर था। किसी तरह रतन से दो-दो बातें करने का अवसर मिले। इस समय उसकी सबसे बड़ी यही कामना थी। उसका वहाँ जाना शिष्टाचार के विरुद्ध था। आखिर उसने एक क्षण के बाद झूले की ओर देखकर कहा–इतने लड़के किधर से आ गये?

वकील–रतनबाई को बाल-समाज से बड़ा स्नेह है। न जाने कहाँ से इतने लड़के जमा हो जाते हैं। अगर आपको बच्चों से प्यार हो तो जाइए !

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