उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जालपा–दिये होते, तो कोई रुपयों का तकाजा क्यों करता? जब तुम्हारी आमदनी इतनी कम थी तो गहने लिये ही क्यों? मैंने तो कभी जिद्द न की थी। और मान लो, मैं दो-चार बार कहती भी, तो तुम्हें समझ-बूझकर काम करना चाहिए था। अपने साथ मुझे भी चार बातें सुनवा दीं। आदमी सारी दुनिया से परदा रखता है, लेकिन अपनी स्त्री से परदा नहीं रखता। तुम मुझसे भी परदा रखते हो। अगर मैं जानती, तुम्हारी आमदनी इतनी थोड़ी है तो मुझे क्या ऐसा शौक चर्राया था कि मुहल्ले भर की स्त्रियों को ताँगे पर बैठा-बैठाकर सैर कराने ले जाती।
अधिक-से-अधिक यही तो होता, कि कभी-कभी चित्त दुःखी हो जाता, पर यह तकाजे तो न सहने पड़ते। कहीं नालिश कर दे, तो सात सौ के एक हजार हो जायँ। मैं क्या जानती थी कि तुम मुझसे यह छल कर रहे हो। कोई वेश्या तो थी नहीं कि तुम्हें नोच-घसोटकर अपना घर भरना मेरा काम होता। मैं तो भले-बुरे दोनों ही की साथिन हूँ। भले में तुम चाहे मेरी बात मत पूछो; बुरे में तो मैं तुम्हारे गले पड़ूँगी ही।
रमा के मुख से एक शब्द न निकला। दफ्तर का समय आ गया था। भोजन का अवकाश न था। रमा ने कपड़े पहने, और दफ्तर चला। जागेश्वरी ने कहा–क्या बिना भोजन किये ही चलो जाओगे?
रमा ने इसका कोई जवाब न दिया, और घर से निकलना ही चाहता था, कि जालपा झपटकर नीचे आयी और पुकारकर बोली–मेरे पास जो दो सौ रुपये हैं, उन्हें क्यों नहीं सर्राफ़ को दो देते?
रमा ने चलते वक्त जान-बूझकर जालपा से रुपये न माँगे थे। वह जानता था, जालपा माँगते ही दे देगी; लेकिन इतनी बातें सुनने के बाद अब रुपये के लिए उसके सामने हाथ फैलाते उसे संकोच ही नहीं, भय होता था। कहीं वह फिर न उपदेश देने बैठ जाये–इसकी अपेक्षा आने वाली विपत्तियाँ कहीं हलकी थीं। मगर जालपा ने उसे पुकारा, तो कुछ आशा बँधी। ठिठक गया और बोला–अच्छी बात है, लाओ दे दो।
वह बाहर के कमरे में बैठ गया। जालपा दौड़कर ऊपर से रुपये लायी और गिन-गिनकर उसकी थैली में डाल दिये। उसने समझा था, रमा रुपये पाकर फूला न समायेगा; पर उसकी आशा पूरी न हुई। अभी तीन सौ रुपये की फिक्र करनी थी। वह कहाँ से आयेंगे? भूखा आदमी इच्छापूर्ण भोजन चाहता है, दो-चार फुलकों से उसकी तुष्टि नहीं होती।
सड़क पर आकर रमा ने एक ताँगा लिया और उससे जार्जटाउन चलने को कहा–शायद रतन से भेंट हो जाये। वह चाहे तो तीन सौ रुपये का बड़ी आसानी से प्रबन्ध कर सकती है। रास्ते में वह सोचता जाता था, आज बिल्कुल संकोच न करूँगा। ज़रा देर में जार्जटाउन आ गया। रतन का बँगला भी आया। वह बरामदे में बैठी थी। रमा ने उसे देखकर हाथ उठाया, उसने भी हाथ उठाया; पर वहाँ उसका सारा संयम टूट गया। वह बँगले में न जा सका। ताँगा सामने से निकल गया। रतन बुलाती तो वह चला जाता। वह बरामदे में न बैठी होती शायद वह अन्दर जाता; पर उसे सामने बैठे देखकर संकोच में डूब गया।
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