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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


हथकड़ियाँ ! यह शब्द तीर की भाँति रमा की छाती में लगा। वह सिर से पाँव तक काँप उठा। उस विपत्ति की कल्पना करके उसकी आँखें डबडबा आयी। वह धीरे-धीरे सिर झुकाये, सज़ा पाये हुए कैदी की भाँति जाकर अपनी कुरसी पर बैठ गया; पर यह भयंकर शब्द बीच-बीच में उसके हृदय में गूँज जाता था।

आकाश की काली घटाएँ छायी थीं। सूर्य का कहीं पता न था, क्या वह भी उस घटारूपी कारागार में बन्द है, क्या उसके हाथों में भी हथकड़ियाँ हैं?

[२०]

रमा शाम को दफ्तर से चलने लगा, तो रमेश बाबू दौड़े हुए आये और कल रुपये लाने की ताकीद की। रमा मन में झुँझला उठा। आप बड़े ईमानदार की दुम बने हैं ! ढोंगिया कहीं का अगर अपनी ज़रूरत आ पड़े, तो दूसरों के तलवे सहलाते फिरेंगे; पर मेरा काम है तो आप आदर्शवादी बन बैठे। यह सब दिखाने के दाँत हैं, मरते समय  इसके प्राण भी जल्दी नहीं निकलेंगे !

कुछ दूर चलकर उसने सोचा, एक बार फिर रतन के पास चलूँ। पर ऐसा कोई न था जिससे मिलने की आशा होती। वह जब उसके बँगले पर पहुँचा, तो वह अपने बगीचें में गोल चबूतरे पर बैठी हुई थी। उसके पास ही एक गुजराती जौहरी बैठा सन्दूक से सुन्दर आभूषण निकाल-निकालकर दिखा रहा था। रमा को देखकर बहुत ही खुशी हुई। आइए बाबू साहब देखिए सेठजी कैसी अच्छी-अच्छी चीजें लाये हैं। देखिए कितना सुन्दर है, इसके दाम बाहर सौ रुपये बताते हैं।’

रमा ने हार को हाथ में लेकर देखा और कहा–हाँ चीज तो अच्छी मालूम होती है !

रतन–दाम बहुत कहते हैं।

जौहरी–बाईजी, ऐसा हार अगर कोई दो हज़ार में ला दे, तो जो जुर्माना कहिए, दूँ, बारह सौ मेरी लागत बैठ गयी है।

रमा ने मुस्कराकर कहा–ऐसा न कहिए सेठजी, जुर्माना देना पड़ जायेगा।

जौहरी–बाबू साहब हार तो सौ रुपये में भी आ जायेगा और बिलकुल ऐसा ही। बल्कि चमक-दमक में इससे भी बढ़कर। मगर परखना चाहिए। मैंने खुद ही आपसे मोल-तोल की बात नहीं की। मोल-तोल अनाड़ियों से किया जाता है। आपसे  क्या मोल-तोल। हम लोग निरे रोजगारी नहीं है बाबू साहब, आदमी का मिजाज देखते हैं। श्रीमती जी ने क्या अमीराना मिज़ाज दिखाया है कि वाह !

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