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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


‘अन्त में, मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देती हूँ कि ईश्वर आपका भला करें; क्योंकि आपने मेरा और मेरी कन्या का भला किया है।’

डाक्टर राजनाथ को पत्र पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वे बहुत देर तक ईश्वरीय माया और मरने वाली सती की दृढ़-प्रतिज्ञा पर विचार करते रहे। उन्होंने दूसरा लिफाफा बिना पढ़े ही अपने बाक्स में बन्द कर दिया।

जब डाक्टर राजनाथ ने सतीश के पत्र में यह पढ़ा कि वह परीक्षा देकर मकान पर न आयेगा, तब उनको बड़ी चिन्ता हुई। उसका विचार कुछ दिनों इधर-उधर घूमने का है। और खर्च के लिए पाँच सौ रुपये इसने माँगे हैं। राजनाथ ने पाँच सौ रुपये का नोट नीचे लिखी चिट्ठी के साथ उसके पास भेज दिया  -

‘प्रिय सतीश,
मुझे बड़ा विस्मय है कि तुम किधर जा रहे हो और क्यों? माताजी तुमको देखने के लिए बड़ी व्यग्र हैं; पर, मुझे भरोसा है कि तुम किसी अच्छे उद्देश्य से ही जा रहे हो। खर्च भेजता हूँ। यथा साध्य शीघ्र लौटना।
शुभानुध्यायी-
राजनाथ।’

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