लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

264 पाठक हैं

गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


पाँचवें-छठे दिन इसका उत्तर आ गया। उसमें लिखा था–

‘पूज्य मामाजी, प्रणाम।
कृपापात्र और ५००) का नोट मिला। मेरे मित्र पण्डित रामदास सुन्दर को आप जानते ही हैं। उनका एक बहुत ही आवश्यक कार्य है, जिसमें वे मेरी सहायता चाहते हैं। उस कार्य के लिए इधर-उधर घूमना पड़ेगा। मैं आपको पहले पत्र में ही वह कार्य बता देता, जिसके लिए यह तैयारी है; पर उसको गुप्त रखने के लिए उन्होंने ताकीद कर दी है। अब आप यदि आज्ञा दें, तो मैं उनके साथ चला जाऊँ। आपके उत्तर की मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
सेवक–
सतीश

पत्र को पढ़कर राजा बाबू कुछ देर सोचते रहे। फिर उन्होंने नीचे लिखा हुआ प्रत्युत्तर अपने भानजे के पास भेजा-

‘प्रिय सतीश,
मैं बड़ी प्रसन्नता से तुमको अपने मित्र का कार्य में सहायता देने की आज्ञा देता हूँ। खर्च के लिए जिस कदर रुपये की और जरूरत हो, निस्संकोच मँगा लेना। यात्रा से लौटते समय अपने मित्र को भी एक दिन के लिए इधर लाना। उनको बहुत दिनों से मैंने नहीं देखा। देखने को तबीअत चाहती है। आशा है, वे मेरी प्रार्थना स्वीकार करेंगे।
शुभैषी–
राजनाथ।’

राजा बाबू ने पत्र समाप्त ही किया था कि सरला ने चाँदी की तश्तरी में कुछ तराशे हुए फल उनके सामने रख दिये। राजा बाबू फल खाते-खाते सरला से इधर-उधर की बातें करने लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book