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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

झलमला

श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

(आप मध्य प्रदेश के निवासी और प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के सम्पादक थे। आपकी शैली बहुत ही प्रौढ़, विचारशील और कटाक्षपूर्ण है। आपने प्राच्य और पाश्चात्य –साहित्य का गहन अध्ययन किया है। ‘साहित्य विमर्श’ में आपने संसार-साहित्य की मार्मिक विवेचना की है। आप सुकवि भी हैं।)

मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आँचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी की ओर जा रही है। मैंने पूछा– क्यों री! यह क्या है? वह बोली –झलमला। मैंने फिर पूछा –इससे क्या होगा? उसने उत्तर दिया – नहीं जानते हो बाबू, आज तुम्हारी बड़ी भाभी पंडितजी की बहू की सखी होकर आई है, इसीलिए मैं उन्हें झलमला दिखाने जा रही हूँ।

तब तो मैं भी किताब फेंककर घर के भीतर दौड़ गया। दीदी से जाकर कहने लगा – दीदी, थोड़ा तेल तो दो।

दीदी ने कहा –जा, अभी मैं काम में लगी हूँ।

मैं निराश होकर अपने कमरे में लौट आया। फिर मैं सोचने लगा – यह अवसर जाने न देना चाहिये, अच्छी दिल्लगी होगी। मैं इधर –उधर देखने लगा। इतने में मेरी दृष्टि एक मोमबत्ती के टुकड़े पर पड़ी। मैंने उसे उठा लिया और दियासलाई का बक्स लेकर भाभी के कमरे की ओर गया। मुझे देखकर भाभी ने पूछा– कैसे आये बाबू- मैंने बिना उत्तर दिये ही मोमबत्ती के टुकड़े जलाकर सामने रख दिया। भाभी ने हँसकर पूछा – यह क्या है?

मैंने गंभीर स्वर में उत्तर दिया – झलमला।

भाभी ने कुछ न कहकर मेरे हाथ पर पाँच रुपये रख दिए। मैं कहने लगा – भाभी, क्या तुम्हारे प्रेम के आलोक का इतना ही मूल्य है? भाभी ने हँसकर कहा – तो कितना चाहिये? मैंने कहा – कम-से-कम एक गिनी। भाभी कहने लगी – अच्छा, इस पर लिख दो, मैं अभी देती हूँ।

मैंने तुरन्त ही चाकू से मोमबत्ती के टुकड़े पर लिख दिया -‘मूल्य एक गिनी।’ भाभी ने गिनी निकालकर मुझे दे दी और मैं अपने कमरे में चला आया। कुछ दिनों बाद गिनी के खर्च हो जाने पर मैं यह घटना बिलकुल भूल गया।

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