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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


८ वर्ष व्यतीत हो गये! मैं बी० ए०, एल-एल० बी० होकर इलाहाबाद से घर लौटा। घर की वैसी दशा न थी जैसी आठ वर्ष पहले थी। न भाभी थी, न विमला दासी ही। भाभी हम लोगों को सदा के लिए छोड़कर स्वर्ग चली गई थी, और विमला कटंगी में खेती करती थी।

संध्या का समय था। मैं अपने कमरे में बैठा न जाने क्या सोच रहा था। पास ही कमरे में पड़ोस की कुछ स्त्रियों के साथ दीदी बैठी थी। कुछ बातें हो रही थीं, इतने में मैंने सुना, दीदी किसी स्त्री से कह रही हैं – कुछ भी हो बहिन, मेरी बड़ी बहू घर की लक्ष्मी थी। उस स्त्री ने कहा – हाँ बहिन, खूब याद आई, मैं तुमसे पूछने वाली थी। उस दिन तुमने मेरे पास सखी का सन्दूक भेजा था न? दीदी ने उत्तर दिया –हाँ बहिन, बहू कह गई थी, उसे रोहिणी को दे देना। उस स्त्री ने कहा – उसमें सब तो ठीक था, पर एक विचित्र बात थी। दीदी ने पूछा – कैसी विचित्र बात? वह कहने लगी – उसे मैंने खोलकर एक दिन देखा तो उसमें एक जगह खूब हिफाजत से रेशमी रूमाल में कुछ बँधा हुआ मिला। मैं सोचने लगी यह क्या है? कौतूहलवश उसे खोलकर मैंने देखा।

बहिन, कहो तो उसमें भला क्या रहा होगा? दीदी ने उत्तर दिया–गहना रहा होगा। उसने हँसकर कहा – नहीं गहना न था। वह तो एक अधजली मोमबत्ती का टुकड़ा था और उस पर लिखा हुआ था - ‘मूल्य एक गिनी।’ क्षणभर के लिए मैं ज्ञान-शून्य हो गया, फिर अपने हृदय के आवेग को न रोककर, मैं उस कमरे में घुस पड़ा और चिल्लाकर कहने लगा- वह मेरी है, मुझे दे दो! कुछ स्त्रियाँ मुझे देखकर भागने लगीं। कुछ इधर-उधर देखनें लगीं। उस स्त्री ने अपना सिर ढाँपते-ढाँपते कहा – अच्छा बाबू मैं कल उसे भेज दूँगी। पर मैंने रात को ही एक दासी भेजकर उस टुकड़े को मँगा लिया। उस दिन मुझसे कुछ नहीं खाया गया। पूछे जाने पर मैंने यह कहकर टाल दिया कि सिर में दर्द है। बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। जब सब सोने के लिए गये तब मैं अपने कमरे में आया। मुझे उदास देखकर कमला पूछने लगी – सिर का दर्द कैसा है? पर मैंने कुछ उत्तर न दिया, चुपचाप जेब से मोमबत्ती निकाल कर उसे जलाया और उसे एक कोने में रख दिया।

कमला ने पूछा–यह क्या है?

मैंने उत्तर दिया–झलमला।

कमला कुछ न समझ सकी। मैंने देखा कि थोड़ी देर में मेरे झलमले का क्षुद्र आलोक रात्रि के अन्धकार में विलीन हो गया।

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