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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

ताई

विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक

(आप कानपुर के निवासी हैं। आपकी कहानियाँ प्रायः हिन्दीमासिक–पत्रिकाओं में निकलती रहती हैं। ‘गल्प मन्दिर’ ‘चित्रशाला’–ये दो संग्रह आपकी कहानियों के प्रकाशित हो चुके हैं। कुछ दिनों तक आपने ‘मनोरंजन’ मासिक-पत्र का बड़ी योग्यता से सम्पादन किया। आपकी कहानियों में बहुधा निम्नश्रेणी के चरित्रों का चित्रण होता है। आपकी कला की विशेषता, संभाषण है। संभाषण-द्वारा ही आपने कई ड्रामे लिखे हैं। आपका एक उपन्यास धारावाहिक के रूप में ‘सुधा’ में निकला था, जो अब पुस्तक रूप में भी छप गया।)

‘ताऊजी, हमें रेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला देंगे?’–कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा।

बाबू साहब ने दोनों बाहें फैलाकर कहा–हाँ बेटा, ला देंगे!

उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमकर बोले–क्या करेगा रेलगाड़ी?

बालक बोला–उसमें बैठ कर दूल जायँगे। हम भी जायेंगे-चुन्नी को भी ले जायँगे। बाबूजी को नहीं ले जायँगे। हमें लेलगाड़ी नहीं ला देते। ताऊजी, तुम लादोगे, तो तुम्हें ले जायँगे।

बाबू–और किसको ले जायगा?

बालक दम-भर सोचकर बोला–बछ, और किसी को नहीं ले जायँगे।

पास ही बाबू रामदास की अर्द्धांगिनी बैठी थी। बाबू ने उनकी ओर इशारा करके कहा–और अपनी ताई को नहीं ले जायेगा?

बालक कुछ देर तक अपनी ताई की ओर देखता रहा। ताईजी उस समय कुछ चिढ़ी हुई-सी बैठी थीं। बालक को उनके मुख का वह भाव अच्छा न लगा। अतएव वह बोला–ताई को नहीं ले जायँगे।

ताईजी सुपारी काटती हुईं बोली–अपने ताऊजी ही को ले जा? मेरे ऊपर दया रख!

ताई ने वह बात बड़ी रुखाई के साथ कही। बालक ताई के शुष्क व्यवहार को तुरत ताड़ गया। बाबू साहब ने फिर पूछा–

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