कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
‘ताई को क्यों नहीं ले जायगा?’
बालक–ताई हमें प्याल (प्यार) नहीं कलतीं।
बाबू–जो प्यार करें, तो ले जायगा?
बालक को इसमें कुछ सन्देह था। ताईका भाव देखकर उसे यह आशा नहीं थी कि वह प्यार करेंगी। इससे बालक मौन रहा।
बाबू साहब ने फिर पूछा–क्यों रे, बोलता नहीं? ताई प्यार करें तो रेल पर बिठाकर ले जायगा?
बालक ने ताऊजीको प्रसन्न करने के लिए केवल सिर हिलाकर स्वीकार कर लिया; परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा।
बाबू साहब उसे अपनी अर्धांगिनी के पास ले जाकर उनसे बोले–इसे प्यार कर लो, तो यह तुम्हें भी ले जायगा। परन्तु बच्चे की ताई श्रीमती रामेश्वरी को पति की यह चुहलबाजी अच्छी न लगी। वह तुनककर बोली–तुम्हीं रेल पर बैठकर जाओ, मुझे नहीं जाना है।
बाबू साहब ने रामेश्वरी की बात पर ध्यान नहीं दिया। बच्चे को उनकी गोद में बिठाने की चेष्टा करते हुए बोले–
प्यार नहीं करोगी, तो फिर रेल में नहीं बिठायेगा। क्यों रे मनोहर?
मनोहर ने ताऊ की बात का उत्तर नहीं दिया। उधर ताई ने मनोहर को अपनी गोद से ढकेल दिया। मनोहर नीचे गिर पड़ा। शरीर में चोट नहीं लगी; पर हृदय में चोट लगी। बालक रो पड़ा।
बाबू साहब ने बालक को गोद में उठा लिया, चुमकार-पुचकार कर चुप किया, और तत्पश्चात् उसे कुछ पैसे तथा रेलगाड़ी ला देने का वचन देकर छोड़ दिया। बालक मनोहर भय-पूर्ण दृष्टि से अपनी ताई की ओर ताकता हुआ उस स्थान से चला गया।
मनोहर के चले जाने पर बाबू रामजीदास रामेश्वरी से बोले–तुम्हारा यह कैसा व्यवहार है? बच्चे को ढकेल दिया! जो उसके चोट लग जाती, तो?
रामेश्वरी मुँह मटकाकर बोली–लग जाती, तो अच्छा होता। क्यों मेरी खोपडी पर लाद देते थे? आप ही तो उसे मेरे ऊपर डालते थे, और आप ही अब ऐसी बातें करते हैं।
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