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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


श्रीमतीजी कुछ-कुछ रुआँसे स्वर में बोलीं–इसी विश्वास ने तो सब चौपट कर रखा है! ऐसे ही विश्वास पर सब बैठ जायँ, तो काम कैसे चले। सब विश्वास पर ही बैठे रहें, आदमी काहे को किसी बात के लिये चेष्टा करे।

बाबू साहब ने सोचा कि मूर्ख स्त्री के मुँह लगना ठीक नहीं; अतएव वह स्त्री की बात का कुछ उत्तर न देकर वहाँ से टल गये।

बाबू रामजीदास धनी आदमी हैं। कपड़े के आढ़त का काम करते हैं। लेन-देन भी है। इनके एक छोटा भाई भी है। उसका नाम है कृष्णदास। दोनों भाइयों का परिवार एक ही है। बाबू रामजीदास की आयु पैंतीस वर्ष के लगभग है और छोटे भाई कृष्णदास की इक्कीस के लगभग। रामजीदास निस्संतान हैं। कृष्णदास के दो सन्तानें हैं। एक पुत्र–वही पुत्र, जिससे पाठक परिचित हो चुके हैं–और अपनी एक कन्या है। कन्या की आयु दो वर्ष के लगभग है।

रामजीदास अपने छोटे भाई और उनकी सन्तान पर बड़ा स्नेह रखते हैं–ऐसा नेह कि उसके प्रभाव से उन्हें अपनी सन्तानहीनता कभी खटकती ही नहीं। छोटे भाई की सन्तान को वे अपनी ही सन्तान समझते हैं।

परन्तु रामेश्वरी की पत्नी की अपनी सन्तानहीनता का बड़ा दुःख है। वह दिन-रात सन्तान ही के सोच में घुला करती है। छोटे भाई की सन्तान पर पति का प्रेम उनकी आँखों में काँटे की तरह खटकता है।

रात को भोजन इत्यादि से निवृत्त होकर रामजीदास शैय्या पर लेटे हुए शीतल और मन्द वायु का आनन्द ले रहे थे। पास ही दूसरी शैया पर रामेश्वरी; हथेली पर सिर रक्खे; किसी चिन्ता में डूबी हुई थीं। दोनों बच्चे अभी बाबू साहब के पास से उठकर अपनी माँ के पास गये थे।

बाबू साहब ने अपनी पत्नी की ओर करवट लेकर कहा–आज तुमने मनोहर को इस तरह ढकेला था कि मुझे अब तक उसका दुःख है। कभी-कभी तो तुम्हारा व्यवहार बिलकुल अमानुषिक हो उठता है।

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