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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


सरला ने पहले तो कुछ संकोच अनुभव किया; पर अन्नपूर्णा की ममतापूर्ण और डाक्टर साहब की स्नेह-भरी बातों ने उसको बता दिया कि वह मानों अपने घर में है। डाक्टर साहब ने सरला की शिक्षा का भी समुचित प्रबंध कर दिया।

सरला भी डाक्टर साहब की यथा-शक्य सेवा करने लगी। पर नौकरों की तरह नहीं, घर के बच्चे की तरह। वह डाक्टर साहब को अपने हाथ से भोजन कराती। अन्नपूर्णाजी यद्यपि अपने देवोपम पुत्र के लिए स्वयं ही भोजन तैयार करती; पर सरला फिर भी उनको कुछ कम सहायता न देती। सरला को धीरे-धीरे पाक-शास्त्र की शिक्षा मिलने लगी। वृद्धा अन्नपूर्णा के निरीक्षण में निरामिषभोजी डाक्टर साहब के लिए विविध प्रकार के शाक, खीर, हलुवा आदि अनेक सु-स्वाद और पौष्टिक पदार्थ बनाने लगी। प्रात:काल होते ही, अन्नपूर्णा की पूजा का सामान भी वह ठीक कर देती। घर के बगीचे से फूल लाकर सजा देती और चन्दन आदि सामग्री यथास्थान रख देती। अपनी सेवा और सु-स्वभाव से- मतलब यह है कि-सरला ने डाक्टर साहब और उनकी वृद्धा माता के हृदय में सन्तान से पढ़कर स्नेह पैदा कर लिया।

बड़े दिन की छुट्टियों में सतीश घर आया। उसने देखा कि घर में एक देवी-स्वरूपिणी कन्या रहती है। उसके आलोक से उसने मानों सारा मकान को आलोकित पाया। मामा से पूछने पर उसको मालूम हुआ कि वह भी उनकी एक आत्मीया और कुछ दिनों तक उसके यहाँ रहने के लिए चली आयी है। दो-चार दिन तक सतीश को उसके साथ बातचीत करने में संकोच-सा मालूम हुआ। उधर सरला भी एक नये आदमी के साथ बातचीत करने में झिझकती रही; पर कुछ ही दिनों में दोनों की तबीयतें खुल गईं।

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