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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


फिर तो वे आपस में खूब अलाप करने लगे। सतीश ने सरला से कभी उसका परिचय न पूछा; क्योंकि वह मामाजी की बात को वेद भगवान् की बात समझता था। न सरला ने ही अपना प्रकृत परिचय देने की आवश्यकता समझी। इसमें सन्देह नहीं कि सरला की योग्यता, गृहकार्य-कुशलता और उसके पवित्रता पूर्ण आचरण पर सतीश मन से मुग्ध हो गया। सरला भी सतीश के कामों का बड़ा ध्यान रखती। सतीश प्राय: देखता कि उसके कपड़े तह किये हुए यथास्थान रक्खे हैं, वह अपने पढ़ने की पुस्तकें भी–जिनको वह इधर-उधर बिखरी और खुली हुई छोड़ गया था– बन्द की हुई और चुनी हुई पाता। छुट्टियों के अत्यल्प काल में ही सरला ने उसके हृदय में स्थान कर लिया! उसको न मालूम क्यों हर समय सरला का ध्यान रहने लगा। वह अपने मन में भी इसका कारण कई दफे पूछकर कुछ उत्तर न पा सका था। परन्तु वह जाने या न जाने-और जानने की जरूरत भी नहीं –प्रेमदेव की पवित्र किरणों से उसका हृदयाकाश अवश्य ही आलोकित रहने लगा, वह कभी सरला को पढ़ाता- बीसियों नई-नई बातें बताता- और कभी घण्टों खाली इधर-उधर की बातें ही करता। मतलब यह कि इन दोनों की मैत्री दिन-पर-दिन मजबूत होने लगी। छुट्टियाँ समाप्त होने पर जब सतीश कालेज को जाने लगा, तब उसे मकान छोड़ने में बड़ा मीठा-दर्द रूपी मोहमालूम हुआ; पर वह तत्काल सँभल गया और हमेशा की तरह मामाजी और वृद्धा के चरण छूकर सरला से आँखों-ही-आँखों उसने बिदा ली।

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