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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


उसी समय आकाश से एक पतंग कटकर उसी छत की ओर आई और रामेश्वरी के ऊपर से होती हुई छज्जे की ओर गयी। छत के चारों ओर चहारदीवारी थी। जहाँ रामेश्वरी खड़ी थी, केवल वहीं पर एक द्वार था, जिससे छज्जे पर आ जा सकते थे। रामेश्वरी उस द्वार से सटी हुई खड़ी थीं। मनोहर ने पतंग को छज्जे पर जाते देखा। पतंग पकड़ने के लिए वह दौड़कर छज्जे की ओर चला। रामेश्वरी खड़ी देखती रहीं। मनोहर उसके पास से होकर छज्जे पर चला गया और उससे दो फिट की दूरी पर खड़ा होकर पतंग दो देखने लगा। पतंग छज्जे पर से होती हुई नीचे आँगन में जा गिरी। एक पैर छज्जे की मुँडेर पर रखकर मनोहर ने नीचे आँगन में झाँका और पतंग को आंगन में गिरते देख प्रसन्नता के मारे फूला न समाया। वह नीचे जाने के लिए शीघ्रता से घूमा; परन्तु घूमते समय मुँडेर पर से उसका पैर फिसल गया। वह नीचे की ओर चला। नीचे जाते-जाते उसके दोनों हाथों में मुँडेर आ गई। वह उसे पकड़कर लटक गया और रामेश्वरी की ओर देखकर चिल्लाया–ताई! रामेश्वरी ने धड़कते हुए हृदय से इस घटना को देखा। उसके मन में आया, कि अच्छा है, मरने दो, सदा का पाप कट जायगा। यह सोचकर वह एक क्षण के लिए रुकी। उधर मनोहर के हाथ मुंडेर से फिसलने लगे। वह अत्यन्त भय तथा करुण नेत्रों से रामेश्वरी की ओर देखकर चिल्लाया–अरी ताई! रामेश्वरी की आँखें मनोहर की आँखों से जा मिलीं। मनोहर की वह करुण दृष्टि देखकर रामेश्वरी का कलेजा मुँह को आ गया। उन्होंने व्याकुल होकर मनोहर को पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। उनका हाथ मनोहर के हाथ तक पहुँचा ही था कि मनोहर के हाथ से मुँडेर छूट गयी। वह नीचे आ गिरा। रामेश्वरी चीख मारकर छज्जे पर गिर पड़ी।

रामेश्वरी एक सप्ताह तक बुखार में बेहोश पड़ी रहीं। कभी-कभी वह जोर से चिल्ला उठतीं, और कहतीं–देखो-देखो वह गिरा जा रहा है–उसे बचाओ–दौड़ो–मेरे मनोहर को बचा लो। कभी वह कहतीं–बेटा मनोहर मैंने तुझे नहीं बचाया। हाँ-हाँ, मैं चाहती, तो बचा सकती थी–मैंने देर कर दी।–इसी प्रकार के प्रलाप वह किया करतीं।

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