कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
मिर्जा–जी हाँ, चला क्यों न जाऊँ। दो किश्तों में आपको मात होती है।
मीर–जनाब, इस भरोसे में न रहिएगा। वह चाल सोची है कि आपके मुहरे धरे रहें, और मात हो जाए। पर जाइए, सुन आइए, क्यों ख्वामह-ख्वाह उनका दिल दुखाइएगा?
मिर्जा–इसी बात पर मात ही करके जाऊँगा।
मीर–मैं खेलूँगा ही नहीं। आप जाकर सुन आइए।
मिर्जा–अरे यार जाना, ही पड़ेगा हकीम के यहाँ। सिर-दर्द खाक नहीं है; मुझे परेशान करने का बहाना है।
मीर–कुछ भी हो, उनकी खातिर तो करनी ही पड़ेगी।
मिर्जा–अच्छा, एक चाल और चल लूँ।
मीर–हरगिज नहीं, जब तक आप सुन न आवेंगे, मैं मुहरे में हाथ न लगाऊँगा।
मिर्जा साहब मजबूर होकर अन्दर गये तो बेगम साहबा ने त्योरियाँ बदल कर लेकिन कराहते हुए कहा–तुम्हें निगोड़ी शतरंज इतनी प्यारी है! चाहे कोई मर ही जाय, पर उठने का नाम नहीं लेते! नौज कोई तुम जैसा आदमी हो!
मिर्जा–क्या कहूँ, मीर साहब मानते ही न थे। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाकर आया हूँ।
बेगम–क्या जैसे वह खुद निखट्टू हैं, वैसे ही सबको समझते हैं? उनके भी बाल बच्चे हैं, या सबका सफाया कर डाला है!
मिर्जा–बड़ा लती आदमी है। जब आ जाता है तब मजबूर होकर खेलना पड़ता है।
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