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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


मिर्जा–आप मेरा हौसला देखना चाहते हैं, तो फिर आइए, आज दो-दो हाथ हो जायँ, इधर या उधर।

मीर–तो यहाँ तुमसे दबने वाला कौन है?

दोनों दोस्तों ने कमर से तलवारे निकाल ली। नवाबी जमाना था। सभी तलवार, पेशकब्ज, कटार वगैरह बाँधते थे। दोनों विलासी थे, पर कायर न थे। उनमें राजनीतिक भावों का अधःपतन हो गया था। बादशाह के लिए क्यों मरे? पर व्यक्तिगत वीरता का अभाव न था। दोनों ने पैतरे बदले, तलवारे चमकी, छपाछप की आवाजें आयीं। दोनों जख्मी होकर गिरे, दोनों ने वहीं तड़प-तड़प कर जानें दे दीं। अपने बादशाह के लिए उनकी आँखों से एक बूँद आँसू न निकला, उन्होंने शतरंज के वजीर की रक्षा में प्राण दे दिए।

अँधेरा हो चला था। बाजी बिछी हुई थी। दोनों बादशाह अपने-अपने सिंहासन पर बैठे मानो इन वीरों की मृत्यु पर रो रहे थे। चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। खँडहर की टूटी हुई, मेहराबें गिरी हुई दीवारें और धूल-धूसरित मीनारें इन लाशों को देखती और सिर धुनती थीं।

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