लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

264 पाठक हैं

गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

नशा

प्रेमचन्द

ईश्व री एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं गरीब क्लीर्क था, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्प र बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हेंे हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता; पर स्वीभावत: उसका पहलू कुछ कमजोर होता था; क्योंोकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी। वह कहता कि सभी मनुष्यर बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े हमेशा होते रहेंगे, लचर दलील थी। किसी मानुषीय या नैतिक नियम से इस व्यछवस्था़ का औचित्यग सिद्ध करना कठिन था। मैं इस वाद-विवाद की गर्मा-गर्मी में अक्स र तेज हो जाता और लगने वाली बात कह जाता, लेकिन ईश्व्री हारकर भी मुस्क राता रहता था मैंने उसे कभी गर्म होते नहीं देखा। शायद इसका कारण यह था कि वह अपने पक्ष की कमजोरी समझता था।

नौकरों से वह सीधे मुँह बात नहीं करता था। अमीरों में जो एक बेदर्दी और उद्दण्ता होती है, इसमें उसे भी प्रचुर भाग मिला था। नौकर ने बिस्त्र लगाने में जरा भी देर की, दूध जरूरत से ज्या दा गर्म या ठंडा हुआ, साइकिल अच्छीद तरह साफ नहीं हुई, तो वह आपे से बाहर हो जाता। सुस्तीे या बदतमीजी उसे जरा भी बरदाश्तह न थी, पर दोस्तोंी से और विशेषकर मुझसे उसका व्यहवहार सौहार्द और नम्रता से भरा हुआ होता था। शायद उसकी जगह मैं होता, तो मुझमें भी वही कठोरताएं पैदा हो जातीं, जो उसमें थीं, क्यों कि मेरा लोकप्रेम सिद्धांतों पर नहीं, निजी दशाओं पर टिका हुआ था, लेकिन वह मेरी जगह होकर भी शायद अमीर ही रहता, क्यों कि वह प्रकृति से ही विलासी और ऐश्वीर्यप्रिय था।

अबकी दशहरे की छुट्टियों में मैंने निश्चयय किया कि घर न जाऊँगा। मेरे पास किराए के लिए रुपये न थे और न घरवालों को तकलीफ देना चाहता था। मैं जानता हूँ, वे मुझे जो कुछ देते हैं, वह उनकी हैसियत से बहुत ज्याजदा है, उसके साथ ही परीक्षा का ख्या ल था। अभी बहुत कुछ पढ़ना है, बोर्डिंगहाउस में भूत की तरह अकेले पड़े रहने को भी जी न चाहता था। इसलिए जब ईश्वगरी ने मुझे अपने घर का नेवता दिया, तो मैं बिना आग्रह के राजी हो गया। ईश्वररी के साथ परीक्षा की तैयारी खूब हो जाएगी। वह अमीर होकर भी मेहनती और ज़हीन है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book