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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


एक दिन सचमुच यही बात हो गई। ईश्वकरी घर में था। शायद अपनी माता से कुछ बातचीत करने में देर हो गई। यहाँ दस बज गए। मेरी आँखें नींद से झपक रही थीं; मगर बिस्त र कैसे लगाऊं? कुंवर जो ठहरा। कोई साढ़े ग्याीरह बजे महरा आया। बड़ा मुँह लगा नौकर था। घर के धंधों में मेरा बिस्तरर लगाने की उसे सुधि ही न रही। अब जो याद आई, तो भागा हुआ आया। मैंने ऐसी डाँट बताई कि उसने भी याद किया होगा।

ईश्वसरी मेरी डाँट सुनकर बाहर निकल आया और बोला–तुमने बहुत अच्छान किया। यह सब हरामखोर इसी व्यआवहार के योग्यम हैं।

इसी तरह ईश्वछरी एक दिन एक जगह दावत में गया हुआ था। शाम हो गई, मगर लैम्पक मेज पर रखा हुआ था। दियासलाई भी थी, लेकिन ईश्व्री खुद कभी लैम्प  नहीं जलाता था। ‍‍फिर कुंवर साहब कैसे जलाएँ? मैं झुंझला रहा था। समाचार-पत्र आया रखा हुआ था। जी उधर लगा हुआ था, पर लैम्पह नदारद। दैवयोग से उसी वक्तआ मुंशी रियासत अली आ निकले। मैं उन्हीं  पर उबल पड़ा, ऐसी फटकार बताई कि बेचारा उल्लूम हो गया– तुम लोगों को इतनी फिक्र भी नहीं कि लैम्पच तो जलवा दो! मालूम नहीं, ऐसे कामचोर आदमियों का यहाँ कैसे गुजर होता है। मेरे यहाँ घंटे-भर निर्वाह न हो। रियासत अली ने काँपते हुए हाथों से लैम्पँ जला दिया।

वहाँ एक ठाकुर अक्सकर आया करता था। कुछ मनचला आदमी था, महात्मा  गांधी का परम भक्तक। मुझे महात्मावजी का चेला समझकर मेरा बड़ा लिहाज करता था; पर मुझसे कुछ पूछते संकोच करता था। एक दिन मुझे अकेला देखकर आया और हाथ बांधकर बोला–सरकार तो गांधी बाबा के चेले हैं न? लोग कहते हैं कि यह सुराज हो जाएगा तो जमींदार न रहेंगे।

मैंने शान जमाई–जमींदारों के रहने की जरूरत ही क्याु है? यह लोग गरीबों का खून चूसने के सिवा और क्याब करते हैं?

ठाकुर ने ‍फिर पूछा–तो क्यों , सरकार, सब जमींदारों की जमीन छीन ली जाएगी। मैंनें कहा– बहुत-से लोग तो खुशी से दे देंगे। जो लोग खुशी से न देंगे, उनकी जमीन छीननी ही पड़ेगी। हम लोग तो तैयार बैठे हुए हैं। ज्योंे ही स्वीराज्य  हुआ, अपने इलाके असामियों के नाम हिब्बा कर देंगे।

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