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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


राजा चम्पतराय ने फिर ओरछे के किले में पदार्पण किया। उन्हें मंसब और जागीर के हाथ से निकल जाने का अत्यन्त शोक हुआ; किन्तु उन्होंने अपने मुँह से शिकायत का एक शब्द भी नहीं निकाला। वे सारन्धा के स्वभाव को भली-भाँति जानते थे। शिकायत इस समय उसके आत्म-गौरव पर कुठार का काम करता। कुछ दिन वहाँ शान्तिपूर्वक व्यतीत हुए; लेकिन बादशाह सारन्धा की कठोर बातें भूला न था। वह क्षमा करना चाहता ही न था। ज्योंही भाइयों की ओर से निश्चिन्त हुआ, उसने एक बड़ी सेना चम्पतराय का गर्व चूर्ण करने के निमित्त भेजी और बाईस अनुभवशील सरदार इस मुहीम पर नियुक्त किये। शुभकरण बुन्देला बादशाह का सूबेदार था। वह चम्पतराय का बचपन का मित्र और सहपाठी था। उसने चम्पतराय को परास्त करने का बीड़ा उठाया और भी कितने बुन्देला सरदार राजा से विमुख होकर बादशाही सूबेदार से आ मिले। एक घोर संग्राम हुआ। भाइयों की तलवारें रक्त से लाल हुईं। यद्यपि इस समर में राजा को विजय प्राप्त हुई; लेकिन उसकी शक्ति सदा के लिए क्षीण हो गई। निकटवर्ती बुन्देला राजा, जो चम्पतदराय के बाहुबल थे, बादशाह के कृपाकांक्षी बन बैठे! साथियों में कुछ तो काम आये, कुछ दगा कर गये। यहाँ तक कि जिन सम्बन्धियों ने भी आँखें चुरा लीं। परन्तु इन कठिनाइयों में भी चम्पराय ने हिम्मत नहीं हारी। धीरज को नहीं छोड़ा। उन्होंने ओरछा छोड़ दिया और तीन वर्ष तक बुन्देलखण्ड के सघन पर्वतों पर छिपे फिरते रहे। बादशाही सेनाएँ शिकारी जानवरों की भाँति सारे देश में मँडरा रही थीं। आये दिन राजा का किसी-न-किसी से सामना हो जाता था। सारन्धा सदैव उनके साथ रहती और साहस बढ़ाया करती। बड़ी-बड़ी विपत्तियों में भी वह जब कि धैर्य लुप्त हो जाता-और आशा साथ छोड़ देती-आत्मरक्षा का धर्म उसे सँभाले रहता था। तीन साल के बाद अन्त में बादशाह के सूबेदारों ने आलमगीर को सूचना दी, कि इस शेर का शिकार आपके सिवाय और किसी से न होगा। उत्तर आया कि सेना को हटा लो और घेरा उठा। राजा समझा, संकट से निवृत्ति हुई! पर यह बात शीघ्र ही भ्रमात्मक सिद्ध हो गई।

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